'COMMENTS' फेसबुक में इस 'टिप्पणी कालम' को देखकर मन में कई ख्याल आ रहे हैं, याद कीजिए एक ज़माना हुआ करता था जब बातों बातों से शुरु हुई बहस सिर्फ इसलिए गोली बारी तक पहुंच जाती थी कि 'आखिर तुमने मेरे ऊपर कमेंट कैसे किया'? 'बड़े गुस्से में लोग कहते थे बात को सीधे क्यों नहीं कहते हो कमेंट क्यों करते हो' ? और अब देखिए..........अब तो दुनिया ही कमेंट्स पर चलती है, हाल-चाल कमेंट्स से मिलता है, दिमाग़ी तरंगे भी फेसबुक में कमेंट्स के एंटीने में ही रिसीव होती हैं और दिल-ए-इज़हार भी स्टेटस के डब्बे में ही अपनी चुप्पी तोड़ता है, ताकि कमेंट्स मिल सकें.
हम सब 'COMMENT' की, अरे नहीं- नहीं 'COMMENTS' की प्रतीक्षा में रहते हैं..कुछ भी लिखते हैं तो बेसब्री से कमेंट्स का इंतज़ार करते हैं और करें भी क्यों ना आखिर यही तो है अपनी टीआरपी. ‘TRP’ बोले तो ‘PUBLICITY KA FUNDA’, फिर तो ये इंतज़ार जायज़ है ना भई...वैसे भी बड़ी मुश्किल से कमेंट ने अपनी सही पहचान पाई है, नहीं तो अब तक तो ये बेचारा अंग्रेजी का अच्छा ख़ासा शब्द अपनी पहचान ही तलाश रहा था, बड़े दुखी मन से कहता था कि ‘’आखिर मेरी ग़लती तो बताओ जो मेरे नाम के अर्थ का अनर्थ कर दिया तुम हिंग्रेजी बोलने वालों ने....मुझे शब्दों का विलेन (‘टिप्पणी’ से ‘Taunt’) बना दिया और मै बेजान कुछ कर भी न सका.... दूधों नहाए और पूते फले ये फेसबुक जो इसने मुझे मेरी पहचान वापस कर दी.. ऊपर वाला आप सब कमेंट करने वालों को भी सुखी रखे जिन्होने अपने ही स्वार्थ के लिए सही लेकिन एक नेक काम तो ज़रूर किया है ’’.......अरे अरे कहां चले, आज तो कमेंट करने से न चूको ,मेरे बारे में पहली बार किसी ने शायद इतना सोचा होगा....!!!
कमेन्ट के बच्चे जहाँ कही भी होंगे आपको दुआए दे रहे होंगे.. कमेन्ट का खोया हुआ सम्मान लौटने की ख़ुशी में ये लीजिये हमारा कमेन्ट..
ReplyDeleteबाय द वे मस्त थोट है ..
Face book pe ya itar social sites ka harbaar password bhool jati hun...ant me email aur blog pe hi atak gayi!
ReplyDeleteWaise aalekh bada rochak likha hai!
बहुत खूब। आपने कमेंट संहिता ही लिख डाली। अच्छी लेखनी के लिए शुभकामना।
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा। इतना तो अभी कह ही सकते हैं।
ReplyDeleteफेसबुक पर कमेंटा-कमेंटी की एक दिक्कत भी है। किसी ने लिखा भी था- तुम मुझे पंत कहो, मैं तुम्हें निराला कहूंगा। हमें इससे बचना चाहिए। यह पोस्ट पढ़कर मज़ा आया। मुझे कुछ लोगों ने बताया कि पंकज आप अच्छा लिखते हैं, लेकिन चूंकि आप मेरे पोस्ट पर कमेंट नहीं करते, इसीलिए मैं आप पर नहीं करता। मैंने कहा- यह अच्छी बात है कि दिल की बातें फार्मल न हों।
ReplyDeleteबदलते परिवेश में फेसबुक ने नई दुनिया को गढ़ा है . हम इससे बेतरह प्रभावित हुए जा रहे है.अपनी टी आर पी बनाने का नया जुमला इसी की देन है .कहीं न कही हमारी दिनचर्या इस कमेन्ट आधारित जाल में फंसती जा रही है . सुबह उठने से लेकर देर रात सोने तक हर समय यही छाया हुआ है .अपने कोमेंट का असर देखने की उत्सुकता बेचैन किए जा रही है .हम समझ ही नहीं पा रहे है -"आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक ...!!!"सबकुछ तुरंत चाहिए .इस रफ्तारी दुनिया में ' इंतजार और सही 'की फुर्सत किसे .
ReplyDeleteये भी सही है कि हमारा कहा दूर तक पहुच रहा है . अब संपादक भले लौटा दे हमारी चिठियो को उसे कई और संपादको तक पहुचाना आसान हो गया है . फिर सवाल आता है के आखिर किनके लिए आसान हुआ है ? उन्हीके लिए न जिनकी पहुँच में ये सब है ,वरना बाकी आबादी तो त्रस्त है ही .चलिए उनकी आवाज हम बन लेते हैं .
bahut zaruri hai baaton ka , vichaaron ka aadaan-pradaan ...... ab use jis naam se kah len, likho, abhinay karo , pratiyogita me jao, log kuch kahte hain n - achha ya bura
ReplyDeletesundar prastuti
ReplyDelete:):) बहुत सटीक व्यंग ..
ReplyDeleteसुन्दर...
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें :-
No Right Click
ma'm ab comment nahi ''like'' ka fachon aane wala hai.........
ReplyDeleteलो डियर तुमहारे ब्लॉक पर ही गई कॉमेंटों की बारीश..जिसमें मेरी एक बूदं भी शामिल है, ये जताने हो दोस्ती का सागर जब भरा जाएगा तो उसमें एक लोटा हमारा भी होगा...।
ReplyDeleteलो डियर तुमहारे ब्लॉक पर ही गई कॉमेंटों की बारीश..जिसमें मेरी एक बूदं भी शामिल है, ये जताने हो दोस्ती का सागर जब भरा जाएगा तो उसमें एक लोटा हमारा भी होगा...।
ReplyDeleterochak .....
ReplyDeleteअब आप भी इस तरह की बात पर ...........जा रहे है .
ReplyDeleteटिप्पणियों से टांट.. बढिया टांट सॉरी थॉट है.. :)
ReplyDeleteमेरा भी नाम दर्ज किया जाये
ReplyDeletenice to see.
ReplyDeletenice to see.
ReplyDeleteवाल्तेयर ने कहा था, "हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊं फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करूंगा।"
ReplyDeleteअगर आप लिखते हैं, और उसे सार्वजनिक करते हैं, तो उस पर विचार प्रकट करने का मेरा अधिकार है।
आज ब्लॉग जगत में इसे या तो कई जगह बंद कर दिया जाता है, यानी विचारों पर पाबंदी, या, will be published after approval, ब्लॉग स्वामी की स्वीकृति के बाद दिखेगा।
ये एक पहलु है।
दूसरा पहलु जो आपने भले ही व्यंग्यातमक शैली में लिखा हो, है तो विचारणीय ही। आज ज़माना, और मुझे तो लगता है सदा से ही रहा है, प्रचार और प्रसार का है। अपनी फ़िल्म बनाकर बड़े-बड़े अभिनेता तरह-तरह के रूप-स्वांग धर कर अपनी फ़िल्म का प्रचार करते हैं, क्यों? ज़्यादा लोग आएं, ज़्यादा दर्शक मिले, इसीलिए ना। तो अगर हम ब्लॉग वाले करते हैं तो उसमें इतनी हाए-तौबा क्यों?
अंत में तो चलता वही है, जिसमें कंटेंट होता है, कमेंट नहीं। इसी लिए फिर वही टिप्पणी उद्धृत करना चाहूंगा, जिसे पढकर (शायद) आपने यहां आने का निमंत्रण दिया था, कि एक महापुरुष ने कहा था "स्पष्ट लिखने वालों के पाठक होते हैं और जो अस्पष्ट लिखते हैं उन पर टिप्पणियां करने वाले होते हैं।--- अब्राहम लिंकन, अमरिका के 16वें राष्ट्रपति।"
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
शैशव, “मनोज” पर, आचार्य परशुराम राय की कविता पढिए!
pashyanti..soch ka ye pahlu aur nazariya..keep it up :)
ReplyDeleteबढ़िया है...!
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