Wednesday, September 15, 2010

वो दिन बहुत ज़हरीले थे..........


मै बहुत छोटी थी शायद 6-7 साल की .. अम्मा ने कहा कि जाओ अंदर से माचिस ले आओ मोमबत्तियां जलानी है, थोड़ी देर में देखते देखते मेरे घर से लेकर मुहल्ले का एक एक घर रोशनी से जगमगा रहा था, कोई मटकी तो कोई थाली बजा रहा था, कोई ड्रम को बजा रहा था तो कोई अपने कपड़े उतार कर रामनाम के जयकारे लगा रहा था...पूरे मोहल्ले में हर कोई नाच गा रहा था,  खुशी में सब इतना मशगूल थे कि पुराने ख्यालातों को तिलांजलि देकर फुल वाल्यूम में स्पीकर चलाकर लड़के और लड़कियां सब एक साथ नाच रहे थे... पड़ोस वाली शुक्ला आंटी से लेकर मेरे पिताजी तक किसी के पास ये बताने के लिए वक्त नहीं था कि आखिर हम बिना दीवाली के ये दीवाली क्यों मना रहे हैं? क्यों पटाखें फोड़ रहे हैं क्यों मिठाईयां बांट रहे हैं ? मेरा बालमन व्याकुल था ये जानने के लिए कि अगर आज दीवाली है तो पिछले महीने क्या था, आज कोई त्योहार है तो हमने नए कपड़े क्यों नहीं पहने हैं? मेरा मन इस सवाल का जवाब पाने को भी बेताब था कि दीवाली पर तो तेल के दिए जलते हैं फिर आज मां ने और पड़ोस वाली मम्मी ने घर में घी के दिए क्यों जलाए हैं...कुछ समझ में नहीं आ रहा था और किसी के पास समझाने के लिए वक्त भी नहीं था..लिहाजा मैने भी उसी खुशी में खुश होना उचित समझा....
वो दिन 6 दिसंबर 1992 था, जब अयोध्या में मस्जिद गिराई गई थी,...अयोध्या मेरे शहर हरदोई से ज्यादा दूर नहीं था, मेरा परिवार आर्यसमाजी और परिवार समेत लगभग पूरा मोहल्ला घोर आरएसएस समर्थक था..,ये खुशी उसी विजय के उपलक्ष्य में मनाई गई थी. वो दिन बहुत जहरीले थे, मै थर्ड क्लास में पढ़ती थी लेकिन मेरी उम्र के मेरे साथी भी मुझे ये सलाह देने लगे थे कि सहबा (मेरी बचपन की पहली दोस्त) से दूर रहा करो क्योंकि वो मुस्लिम है...वो भी मुझसे कटी कटी सी रहने लगी थी, कुछ इस तरह मानो उसने कोई अपराध कर दिया है वो नजर नहीं मिला पाती थी मुझसे.....
आज एक बार फिर पान की दुकानों से लेकर नाई के खोखों तक 24 सितंबर की चर्चा गर्म है.....न्यूजरुम में भी इस मुद्दे की बात चलते ही कई लोगों को बिना किसी ग़लती के कन्नी काटकर जाते देखा जा सकता है..... भले ही आज कुछ विशेष तबकों को छोड़कर अयोध्या मुद्दे से सीधा नाता मध्यमवर्ग का भी न हो ,क्योंकि इऩ 18 सालों में हिंदुस्तान ने कई उतार चढ़ाव देखें है लेकिन इन मुद्दे पर विचारधारा में कुछ खास नही बदला,...अगर कुछ बदली है तो इस विचारधारा को एक्जिक्यूट करने की क्षमता.. इसीलिए मध्यम वर्ग स्थूल रुप से भले ही इससे जुड़ा न हो लेकिन सूक्ष्म शरीर अक्सर अयोध्या के चक्कर लगा आता है.....12 दिसंबर 92 का भाग्य 24 सितंबर 10 के हाथों में सुरक्षित है....फिर भी कोई ईश्वर से ये मना रहा है कि हे- भगवान जो मौका पिछली बार दीवाली के एक महीने बाद दिया था इस बार दीवाली से एक महीने पहले दे दो...तो कोई खुदा से ये मन्नत कर रहा है कि 15 दिन बाद फिर ईद लौट आए...... फैसला किसी के भी पक्ष में जाए और ये बाज़ी कोई भी जीते, डर तो बस ये सोचकर लगता है कि कहीं कोई फिर से मुझे मेरी सहबा से अलग करने की कोशिश न करे. 
(फैसले को टालने के लिए अपील की गई है 23 तारीख को इस पर फैसला होगा कि फैसला सुनाया जाए या सुरक्षित ही रखा जाए...लेकिन फैसला टालने से भी क्या होगा)

Thursday, September 9, 2010

'COMMENTS' करेंगे आप?

'COMMENTS' फेसबुक में इस 'टिप्पणी कालम' को देखकर मन में कई ख्याल आ रहे हैं, याद कीजिए एक ज़माना हुआ करता था जब बातों बातों से शुरु हुई बहस सिर्फ इसलिए गोली बारी तक पहुंच जाती थी कि 'आखिर तुमने मेरे ऊपर कमेंट कैसे किया'? 'बड़े गुस्से में लोग कहते थे बात को सीधे क्यों नहीं कहते हो कमेंट क्यों करते हो' ? और अब देखिए..........अब तो दुनिया ही कमेंट्स पर चलती है, हाल-चाल कमेंट्स से मिलता है, दिमाग़ी तरंगे भी फेसबुक में कमेंट्स के एंटीने में ही रिसीव होती हैं और दिल-ए-इज़हार भी स्टेटस के डब्बे में ही अपनी चुप्पी तोड़ता है, ताकि कमेंट्स मिल सकें.
हम सब 'COMMENT' की, अरे नहीं- नहीं 'COMMENTS' की प्रतीक्षा में रहते हैं..कुछ भी लिखते हैं तो बेसब्री से कमेंट्स का इंतज़ार करते हैं और करें भी क्यों ना आखिर यही तो है अपनी टीआरपी. ‘TRP’ बोले तो ‘PUBLICITY KA FUNDA’, फिर तो ये इंतज़ार जायज़ है ना भई...वैसे भी बड़ी मुश्किल से कमेंट ने अपनी सही पहचान पाई है, नहीं तो अब तक तो ये बेचारा अंग्रेजी का अच्छा ख़ासा शब्द अपनी पहचान ही तलाश रहा था, बड़े दुखी मन से कहता था कि ‘’आखिर मेरी ग़लती तो बताओ जो मेरे नाम के अर्थ का अनर्थ कर दिया तुम हिंग्रेजी बोलने वालों ने....मुझे शब्दों का विलेन (‘टिप्पणी’ से ‘Taunt’) बना दिया और मै बेजान कुछ कर भी न सका.... दूधों नहाए और पूते फले ये फेसबुक जो इसने मुझे मेरी पहचान वापस कर दी.. ऊपर वाला आप सब कमेंट करने वालों को भी सुखी रखे जिन्होने अपने ही स्वार्थ के लिए सही लेकिन एक नेक काम तो ज़रूर किया है ’’.......अरे अरे कहां चले, आज तो कमेंट करने से न चूको ,मेरे बारे में पहली बार किसी ने शायद इतना सोचा होगा....!!!

Friday, September 3, 2010

कोई जाए ज़रा ढूंढ के लाये न जाने कहां नींद खो गई

रात के 2 बजकर 57 मिनट हो चुकें हैं लेकिन आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं है. न ये किसी से मिलने की खुशी है और न हि किसी से बिछड़ने का गम. ये न किसी के प्यार का वो जुनून है जो सोने नहीं देता और न हि किसी की बेवफाई की कसक जिसके काटे से अब रातें नहीं कटती. सच बताऊं तो ये आंखों में गुज़रती रातें एक आदत का परिणाम हैं जानते हैं कौन..नहीं पता अरे वही जिसके बिना काटे नहीं कटते दिन ये रात, न सुबह होती है न शाम होती है, जिंदगी यूंही तमाम होती है... नहीं समझे ना, चलिए हम बता ही देते हैं, अरे वही अपना इंटरनेटजिसकी गिरफ्त में आज पूरा विश्व है, और पिछले कुछ दिनों से मै भी, अभी भी फेसबुक पर 22 लोग आनलाइन हैं यानि मेरे जैसे मेरे 21 दोस्त और हैं..आपको पता है मै और मेरा इंटरनेट एक दूसरे के पूरक बन गए हैं इन दिनों..पूरक बोले तो COMPLEMENTRY TO EACHOTHER. सुख दुख के साथी. 
बड़ी अजब दुनिया है भई इंटरनेट की, नए रिश्ते चैट करते करते यहीं पुराने हो जाते हैं और पुराने यहां नए, फेसबुक और आरकुट हर महीने नए एप्लीकेशन्स के साथ एक नए कलेवर में एक दूसरे को मुंह चिढ़ाते हैं, और उन एप्लीकेशन्स को एप्लाई करने की कोशिश में रात हमें मुंह चिढ़ाती हुई निकल जाती है. सुबह आती है उम्मीद जगती है कि कल की रात आज जैसी नहीं होगी, हम सोचते हैं कि कल से टाइम पर सोना है लेकिन ये मुआं इंटरनेट, ये सोने दे तब ना..ये तो हाथ धोके ही पीछे पड़ गया रे. मेरा दिल तो बस एक ही गाना गुनगुनाता है आजकल...... कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे प्यारे दिन...!!!!!!!
(दुनियाभर में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों का आँकड़ा 2013 तक बढ़कर 2.2 अरब हो जाने की उम्मीद है। तकनीक और बाजार अनुसंधान फर्म फॉरेस्टर रिसर्च की रपट के अनुसार 2013 तक दुनिया में इंटरनेट इस्तेमालकर्ताओं की संख्या 45 प्रतिशत बढ़कर 2.2 अरब हो जाएगी। इस बढ़ोतरी में सबसे ज्यादा योगदान एशिया का रहेगा। रिपोर्ट के मुताबिक 2013 तक भारत इंटरनेट यूजर्स के मामले में चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर होगा। 2008 में दुनिया में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 1.5 अरब थी।)