जब कोई आवाज़ नहीं सुनाई देती है मुझे
पर मेरी सांसो की आवाज़ भी आती है मुझे
जब घड़ी की टिक टिक भी कानों में चुभती है मेरे
जब गाड़ियों की आवाज़ भी खटकती है मुझे
शून्य में ताकती ये मेरी नज़रें
न जाने क्या खोजती हैं
अंधेरों से दोस्ती कर मेरी आंखे
बस यही पूछती हैं कि जब............
कभी रातों में ख्वाबों को
तो कभी ख्वाबों में रातों को
जब जीता है हर कोई
फिर भी न जाने क्यों अंधेरों को कोसता है हर कोई?
जब भावनाए बरबस शब्दों में ढल जाती हैं
जब कविता दिल से गाई जाती है
जब नए सृजन के बीज बोए जाते हैं
अपनी कल्पनाओं को मूर्त रूप दिए जाते हैं..
जब रोशनी आंखों में चुभने सी लगती है
रात जब सुबह से सुहानी लगती है
जब घूम घूम कर सन्नाटे को खोजता है हर कोई
फिर भी न जाने क्यों अंधेरे को कोसता है हर कोई..
फिर भी न जाने...............................................