मौसमी प्रतिकूलता पथभ्रष्ट करने को तुली हैं, किंतु दूजी राह चलने की कभी मैने न मानी अऩकही मेरी कहानी.................
एक तुम्ही आधार सद्गगुरु
Thursday, May 13, 2010
.......न जाने तुझसे मैने क्या वो था ऐसा पाया
किसी सुनहरे स्वप्न मान जो तुम्हे भूल हम बैठे थे
जानबूझ हम गैर बनाकर तुम्हे गंवां भी बैठे थे
किंतु किसी की बात ह्र्दय में आज चुभी कुछ ऐसी है
बीत चला जो समय वही फिर टीस ह्रदय में बसी है
हरपल हरक्षण इंतजार में एक बरस हो आया ,
आज फिर सावन घर आया और फिर दिल ये भर आया
बात भले ही बीत गई हो, बीत गई वो बात न है
ये वो मन की सच्चाई है, जो बीते से भी बीते न
आंख खुले से स्वप्न हैं टूटे ,पर ये तो था सपना न
तुम भी ये थे हम भी ये थे मिल देखा जिसने सपना था
वही स्वप्न अब सत्य रुप में फिर परिचित बन आया है
कैसे तुमको बतलायें हम, मन आतुर क्यों हो आया है
बहुत रास्ते हम भी चल चुके कई मोड़ों से तुम भी गुजरे
हाय भाग्य का लेखा देखो किसी मोड़ पर हम ना झगड़े
जब जब कोई पास था आया हम खुदसे ही दूर हो गए
किंतु नियंता की नियति ये तेरे उतना पास हो गए
एक बरस में भी तेरे बिन कोई न घर पाया
न जाने तुझसे मैने क्या वो था ऐसा पाया......
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एक बरस में भी तेरे बिन कोई न घर पाया
ReplyDeleteन जाने तुझसे मैने क्या वो था ऐसा पाया..
लाजवाब रचना .मन के भावों को बहुत गहराई से प्रकट किया है .....आखरी पंक्ति तो दिल को भेद गयी .
kya baat hai pashyanti ji...
ReplyDeletebahut khub....
dil ko choo lene waali rachna likhi hai aapne....
वही स्वप्न अब सत्य रुप में फिर परिचित बन आया है
कैसे तुमको बतलायें हम, मन आतुर क्यों हो आया है
waah kya baat hai....
regards
shekhar
ma'm kaafi dino baad post likhi thanks. bahut khoob.
ReplyDeleteजिसने भी अपना प्यार खोया होगा इसे पढ़कर आज बहुत रोएगा
ReplyDeleteएक बरस में भी तेरे बिन कोई न घर पाया
ReplyDeleteन जाने तुझसे मैने क्या वो था ऐसा पाया..
-बहुत भावपूर्ण रचना.
dil ko chu gai ye ankahi.
ReplyDeleteकिसने तुम पर इतना असर कर दिया पश्यंती तुम ऐसी भी हो यार...कितने रुप हैं तुम्हारे और कितने छिपे है हां.
ReplyDeleteएक बरस में भी तेरे बिन कोई न घर पाया
ReplyDeleteन जाने तुझसे मैने क्या वो था ऐसा पाया......
I'VE NO WORDS TO SAY........OOOOOOFFFFF
nice ji...
ReplyDeleteवाकई सावन ने कुछ कुछ हरा किया है
ReplyDeleteएक बरस में भी तेरे बिन कोई न घर पाया
ReplyDeleteन जाने तुझसे मैने क्या वो था ऐसा पाया......
This one was fantabulously amazing....great going Pashyanti Ji...
आपका नाम एकदम से अलहदा है।....
ReplyDeleteआपकी रचना के भाव बहुत सुंदर और कोमल हैं। आप इसे गद्य में लिखती तो बेहतर होता।
पश्यंती जी आप मेरी कुछ अन्य पोस्टों का भी अध्ययन करें तभी बात समझ में
ReplyDeleteआयेगी वैसे मुझे हैरत है जो पोस्ट आपने पढी वो भी विशेष कठिन नहीं थी
या तो आप उन प्वाइंट को क्लियर करती जो आपके समझ में नहीं आये .
satguru-satykikhoj.blogspot.com
वही स्वप्न अब सत्य रुप में फिर परिचित बन आया है
ReplyDeleteकैसे तुमको बतलायें हम, मन आतुर क्यों हो आया है
आतुर मन को बहुत अच्छे शब्दों में बांधा है....सुन्दर अभिव्यक्ति
वही स्वप्न अब सत्य रुप में फिर परिचित बन आया है
ReplyDeleteकैसे तुमको बतलायें हम, मन आतुर क्यों हो आया है
आपको पहली बार पढा है आज. बहुत ही सुन्दर भाव.
http://hariprasadsharma.blogspot.com/
http://hariprasadsharma.blogspot.com/
बहुत दिनों बाद एक अच्छा लिखने वाले से रुबरु हुआ ...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखती हैं आप
"बहुत रास्ते हम भी चल चुके कई मोड़ों से तुम भी गुजरे
ReplyDeleteहाय भाग्य का लेखा देखो किसी मोड़ पर हम ना झगड़े
जब जब कोई पास था आया हम खुदसे ही दूर हो गए
किंतु नियंता की नियति ये तेरे उतना पास हो गए "
Jab koi pass aaye to usse door nahi hona chahiye untill n unless wo hame harm na pahucha raha ho........ anyways bahut acha likha hai....... 4 din pahle likhna chahiye tha........
excellent...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा आपने...पसंद आई आपकी रचना.
ReplyDelete______________
पाखी की दुनिया में- 'जब अख़बार में हुई पाखी की चर्चा'
For Ankahi...
ReplyDeleteA thousand desires such as these
A thousand moments to set this night on fire
Reach out and you can touch them
You can touch them with your silences
You can reach them with your lust
Rivers mountains rain
Rain against a torrid hill’s cape
A thousand
A thousand desires such as these
I loved rain as a child
As a lost young man
Empty landscapes
Bleached by a tired sun
And then
And then suddenly it came
Like a dark unknown woman
Her eyes scorched my silences
Her body wrapped itself around me
Like a summer without end
Pause me hold me reach me
Where no man has gone
Crossing the seven seas
With the wings of fire
I fly towards nowhere
And you
Rivers mountains rain
Rain against a scorched landscape of pain
(These lines are somewhere, somehow related to your post...)
-From the Hazaaron Khwaishien Aisi Soundtrack
(snikhil.srivastava@gmail.com)
I think it is only the trap of words which hasn't any ciear meaning.I read it many times but can't understand what would u want to say.First paragraph, 3rd paragraph wow.....each paragraph has different meaning they r indicating east, west, north, south four different directions.what can i say................according to vector law net resultant is a biggggggggggg zeroooooooooo......
ReplyDeleteur marks 8/10 and aap ka kavita ka mukhda bahut auchha haiiiiiiiiiiiii
ReplyDeleteभावनओं को मापने के लिए संवेदनाओं का पैमाना चाहिए
ReplyDeleteपर जिनकी संवेदनाए ही सूख गई हो वो भावनाओं क्या क़द्र करेंगे.
जो भावनाशील हैं इस तरह का कमेन्ट तो नहीं ही करेंगे
सुप्रिया जी आपके कमेंट को चाहती तो मै छुपा ही रहन देती लेकिन ये मेरी ईमानदारी है कि मैने इसे जगह दी है रही बात नेट रिज़ल्टेंट की तो आप मेरी एक्जामिनर नही है आपके एप्रूवल की जरुरत मेरी भावनाओ को बिल्कुल नहीं.....और हा्ं ये आपकी समझदारी की कमी है कि आपको सीधी बात भी समझ नही आती....
ReplyDeleteसुप्रिया जी independent इंडिया में आप बोलने, लिखने और विचार करने के लिये स्वतंत्र हैं लेकीन आपकी ये स्वतंत्रता वही तक सीमित हैं जहां तक दूसरो की स्वतंत्रता का हनन न हो.व्यक्तिगत रूप से शायद मैं आपको नही जनता पर आपके comment आपके ego trip और aggressive nature दोनो को बताता हैं.........भावना को समझने के लिये आपने vector law तो जरूर use कर दिये पर उसका application अपने विचारो के अनुसार कर दिये. कहते हैं attitude make a difference अगर आप अपने नजरिये को सही कर ले तो आपको हर जगह positive चीज मिल जायेगा.ये मेरे लिये नही आपके लिये सही होगा बात simple सी हैं straight और एक definite direction में बिलकुल आपके vector की तरह
ReplyDelete-----------------------------------
ReplyDeletemere blog par meri nayi kavita,
हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
jaroor aayein...
aapki pratikriya ka intzaar rahega...
regards..
http://i555.blogspot.com/
waise hum comments nahi karne wale lekin haan pahli baar aaye hai aapke manch par to kuch zarur kahuga aapke shairi likhne par ki miss shukla ji
ReplyDeletetu shaheen hai parwaaz kaam tera
tere aage aasman aur bhi hai
parwaah mat kijiye critics ki but har har baar behtar kijiyega ..am sure 100% aap ek achchi poet hai ...aur future me bhi behtareen shaira rahegi
best regards
aleem azmi
http://aleemazmi.blogspot.com
लाजवाब
ReplyDeleteपश्यन्ती अच्छा लिखती हो यार..............
ReplyDeletesundar panktiyaan!! :)
ReplyDeleteHi Pashyanti!! i read Supriya's comments on ur write!! Its alraedy appraised in her negative remark itself!! u know East West North South!! if such type of feel!!! comes after reading then any body can make that how GREAT write up is that. so be positive with her too and thats called positive attitude and offcourse that u have already.
ReplyDeletebye
बहुत सुंदर भाव लिए कविता |बधाई
ReplyDeleteआशा
लाजवाब रचना .मन के भावों को बहुत गहराई से प्रकट किया है .
ReplyDeleteबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव.
ReplyDeleteआपकी रचना पढकर मुझे अच्छा लगा ...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आये एवं टिप्पणी किये इसके लिए शुक्रिया ... हमेशा स्वागत है ... आते रहिएगा !
the way you express your feeling and emotions are exceelent. ma'am iam also a person of filled emotions and like to express in words on paper. ihave written about 55 poem and sattires but unable to express it to world. how is it possible?
ReplyDeletemayank bharadwaj
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ReplyDeleteto your own mom. This interests more Moms than you might think which
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