Thursday, May 13, 2010

.......न जाने तुझसे मैने क्या वो था ऐसा पाया


                      किसी सुनहरे स्वप्न मान जो तुम्हे भूल हम बैठे थे
                      जानबूझ हम  गैर   बनाकर  तुम्हे गंवां भी  बैठे  थे
                      किंतु किसी की बात ह्र्दय में आज चुभी कुछ ऐसी है
                      बीत चला जो समय वही फिर टीस  ह्रदय में  बसी है

                     हरपल हरक्षण इंतजार में एक बरस हो आया ,
             आज फिर सावन घर आया और फिर दिल ये भर आया



                   बात  भले  ही  बीत   गई   हो, बीत   गई    वो   बात   न   है
                   ये वो   मन  की    सच्चाई   है,  जो बीते   से  भी   बीते    न
                   आंख खुले  से स्वप्न  हैं  टूटे ,पर ये   तो    था    सपना   न
                   तुम भी ये थे हम भी ये थे मिल देखा जिसने सपना था

           वही स्वप्न अब सत्य    रुप में फिर   परिचित   बन   आया है
           कैसे तुमको   बतलायें हम,   मन   आतुर   क्यों    हो    आया     है

                  
बहुत रास्ते हम भी चल चुके कई मोड़ों से तुम भी गुजरे
                  हाय   भाग्य का लेखा देखो   किसी मोड़   पर हम ना   झगड़े
                  जब  जब कोई   पास था   आया  हम    खुदसे  ही दूर हो   गए
                  किंतु   नियंता  की    नियति    ये    तेरे  उतना पास   हो     गए

           एक बरस में भी तेरे बिन कोई न घर पाया
                           न जाने तुझसे मैने क्या वो था ऐसा पाया......

38 comments:

  1. एक बरस में भी तेरे बिन कोई न घर पाया
    न जाने तुझसे मैने क्या वो था ऐसा पाया..

    लाजवाब रचना .मन के भावों को बहुत गहराई से प्रकट किया है .....आखरी पंक्ति तो दिल को भेद गयी .

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  2. kya baat hai pashyanti ji...
    bahut khub....
    dil ko choo lene waali rachna likhi hai aapne....
    वही स्वप्न अब सत्य रुप में फिर परिचित बन आया है
    कैसे तुमको बतलायें हम, मन आतुर क्यों हो आया है
    waah kya baat hai....
    regards
    shekhar

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  3. ma'm kaafi dino baad post likhi thanks. bahut khoob.

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  4. विवेक कुमारMay 13, 2010 at 2:44 PM

    जिसने भी अपना प्यार खोया होगा इसे पढ़कर आज बहुत रोएगा

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  5. एक बरस में भी तेरे बिन कोई न घर पाया
    न जाने तुझसे मैने क्या वो था ऐसा पाया..

    -बहुत भावपूर्ण रचना.

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  6. मीनाक्षीMay 13, 2010 at 9:30 PM

    किसने तुम पर इतना असर कर दिया पश्यंती तुम ऐसी भी हो यार...कितने रुप हैं तुम्हारे और कितने छिपे है हां.

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  7. एक बरस में भी तेरे बिन कोई न घर पाया
    न जाने तुझसे मैने क्या वो था ऐसा पाया......
    I'VE NO WORDS TO SAY........OOOOOOFFFFF

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  8. वाकई सावन ने कुछ कुछ हरा किया है

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  9. एक बरस में भी तेरे बिन कोई न घर पाया
    न जाने तुझसे मैने क्या वो था ऐसा पाया......

    This one was fantabulously amazing....great going Pashyanti Ji...

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  10. आपका नाम एकदम से अलहदा है।....

    आपकी रचना के भाव बहुत सुंदर और कोमल हैं। आप इसे गद्य में लिखती तो बेहतर होता।

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  11. पश्यंती जी आप मेरी कुछ अन्य पोस्टों का भी अध्ययन करें तभी बात समझ में
    आयेगी वैसे मुझे हैरत है जो पोस्ट आपने पढी वो भी विशेष कठिन नहीं थी
    या तो आप उन प्वाइंट को क्लियर करती जो आपके समझ में नहीं आये .
    satguru-satykikhoj.blogspot.com

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  12. वही स्वप्न अब सत्य रुप में फिर परिचित बन आया है
    कैसे तुमको बतलायें हम, मन आतुर क्यों हो आया है


    आतुर मन को बहुत अच्छे शब्दों में बांधा है....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  13. वही स्वप्न अब सत्य रुप में फिर परिचित बन आया है
    कैसे तुमको बतलायें हम, मन आतुर क्यों हो आया है
    आपको पहली बार पढा है आज. बहुत ही सुन्दर भाव.

    http://hariprasadsharma.blogspot.com/

    http://hariprasadsharma.blogspot.com/

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  14. बहुत दिनों बाद एक अच्छा लिखने वाले से रुबरु हुआ ...
    बहुत अच्छा लिखती हैं आप

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  15. "बहुत रास्ते हम भी चल चुके कई मोड़ों से तुम भी गुजरे
    हाय भाग्य का लेखा देखो किसी मोड़ पर हम ना झगड़े
    जब जब कोई पास था आया हम खुदसे ही दूर हो गए
    किंतु नियंता की नियति ये तेरे उतना पास हो गए "
    Jab koi pass aaye to usse door nahi hona chahiye untill n unless wo hame harm na pahucha raha ho........ anyways bahut acha likha hai....... 4 din pahle likhna chahiye tha........

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  16. बहुत बढ़िया लिखा आपने...पसंद आई आपकी रचना.
    ______________
    पाखी की दुनिया में- 'जब अख़बार में हुई पाखी की चर्चा'

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  17. For Ankahi...
    A thousand desires such as these
    A thousand moments to set this night on fire
    Reach out and you can touch them
    You can touch them with your silences
    You can reach them with your lust
    Rivers mountains rain
    Rain against a torrid hill’s cape
    A thousand
    A thousand desires such as these

    I loved rain as a child
    As a lost young man
    Empty landscapes
    Bleached by a tired sun
    And then
    And then suddenly it came
    Like a dark unknown woman
    Her eyes scorched my silences
    Her body wrapped itself around me
    Like a summer without end

    Pause me hold me reach me
    Where no man has gone
    Crossing the seven seas
    With the wings of fire
    I fly towards nowhere
    And you
    Rivers mountains rain
    Rain against a scorched landscape of pain

    (These lines are somewhere, somehow related to your post...)
    -From the Hazaaron Khwaishien Aisi Soundtrack
    (snikhil.srivastava@gmail.com)

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  18. I think it is only the trap of words which hasn't any ciear meaning.I read it many times but can't understand what would u want to say.First paragraph, 3rd paragraph wow.....each paragraph has different meaning they r indicating east, west, north, south four different directions.what can i say................according to vector law net resultant is a biggggggggggg zeroooooooooo......

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  19. ur marks 8/10 and aap ka kavita ka mukhda bahut auchha haiiiiiiiiiiiii

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  20. annovative thoughtMay 16, 2010 at 6:44 PM

    भावनओं को मापने के लिए संवेदनाओं का पैमाना चाहिए
    पर जिनकी संवेदनाए ही सूख गई हो वो भावनाओं क्या क़द्र करेंगे.
    जो भावनाशील हैं इस तरह का कमेन्ट तो नहीं ही करेंगे

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  21. सुप्रिया जी आपके कमेंट को चाहती तो मै छुपा ही रहन देती लेकिन ये मेरी ईमानदारी है कि मैने इसे जगह दी है रही बात नेट रिज़ल्टेंट की तो आप मेरी एक्जामिनर नही है आपके एप्रूवल की जरुरत मेरी भावनाओ को बिल्कुल नहीं.....और हा्ं ये आपकी समझदारी की कमी है कि आपको सीधी बात भी समझ नही आती....

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  22. innovative thoughtMay 20, 2010 at 9:03 PM

    सुप्रिया जी independent इंडिया में आप बोलने, लिखने और विचार करने के लिये स्वतंत्र हैं लेकीन आपकी ये स्वतंत्रता वही तक सीमित हैं जहां तक दूसरो की स्वतंत्रता का हनन न हो.व्यक्तिगत रूप से शायद मैं आपको नही जनता पर आपके comment आपके ego trip और aggressive nature दोनो को बताता हैं.........भावना को समझने के लिये आपने vector law तो जरूर use कर दिये पर उसका application अपने विचारो के अनुसार कर दिये. कहते हैं attitude make a difference अगर आप अपने नजरिये को सही कर ले तो आपको हर जगह positive चीज मिल जायेगा.ये मेरे लिये नही आपके लिये सही होगा बात simple सी हैं straight और एक definite direction में बिलकुल आपके vector की तरह

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  23. -----------------------------------
    mere blog par meri nayi kavita,
    हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
    jaroor aayein...
    aapki pratikriya ka intzaar rahega...
    regards..
    http://i555.blogspot.com/

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  24. waise hum comments nahi karne wale lekin haan pahli baar aaye hai aapke manch par to kuch zarur kahuga aapke shairi likhne par ki miss shukla ji
    tu shaheen hai parwaaz kaam tera
    tere aage aasman aur bhi hai
    parwaah mat kijiye critics ki but har har baar behtar kijiyega ..am sure 100% aap ek achchi poet hai ...aur future me bhi behtareen shaira rahegi
    best regards
    aleem azmi
    http://aleemazmi.blogspot.com

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  25. पश्यन्ती अच्छा लिखती हो यार..............

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  26. Hi Pashyanti!! i read Supriya's comments on ur write!! Its alraedy appraised in her negative remark itself!! u know East West North South!! if such type of feel!!! comes after reading then any body can make that how GREAT write up is that. so be positive with her too and thats called positive attitude and offcourse that u have already.
    bye

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  27. बहुत सुंदर भाव लिए कविता |बधाई
    आशा

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  28. लाजवाब रचना .मन के भावों को बहुत गहराई से प्रकट किया है .

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  29. बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  30. बहुत ही सुन्दर भाव.

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  31. आपकी रचना पढकर मुझे अच्छा लगा ...
    मेरे ब्लॉग पर आये एवं टिप्पणी किये इसके लिए शुक्रिया ... हमेशा स्वागत है ... आते रहिएगा !

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  32. the way you express your feeling and emotions are exceelent. ma'am iam also a person of filled emotions and like to express in words on paper. ihave written about 55 poem and sattires but unable to express it to world. how is it possible?
    mayank bharadwaj

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