इस देश की हर नारी स्वामी दयानंद की ऋणी है क्योंकि उन्होने नारी को घर की चहारदीवारी से निकालकर पाठशाला की दहलीज़ तक पहुंचाया लेकिन हम कृतज्ञ हैं उस दैवीय सत्ता के जिसने न केवल गायत्री मंत्र को जन जन तक पहुंचाया बल्कि रुढ़ियों से बाहर निकालकर उसे नारी के भी कंठ और होंठो तक पहुंचाया. बहुत कम ही लोग ये जानते हैं कि गुरुदेव के 24 लाख पुरश्चरण अनुष्ठान को करने से पहले गायत्री मंत्र का उच्चारण नारियों के लिए करना वर्जित था यहां तक कि ऊंची आवाज़ में भी इसको उच्चरित करना पुरुषों के लिए भी मना था.. एक झलक है ये उसी महान दैवीय सत्ता की जिसका परिवार पूरे विश्व में अखिल विश्व गायत्री परिवार के नाम से जाना जाता है, जिसकी 80 देशों में शाखाएं हैं, भारत में 4000 से भी ज्यादा सेंटर्स हैं और 5 करोड़ से भी ज्यादा लोग जिसका हिस्सा हैं.....आइए दर्शन करें हमारे गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के........http://www.youtube.com/watch?v=6r4ovVGfXkY&feature=related
हमने तो पढ़ा था कि... धर्म स्त्री-विरोधी होता है...
ReplyDeleteअच्छी जानकारी देने के लिए आभार
ReplyDeleteजानकारी के लिए आभार - हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteआचार्य जी का बहुत नाम सुना है..आज आपके ब्लॉग से कुछ और बातें जान पाया..बढ़िया विवरण...
ReplyDeletePashyanti,pahli baar yah jankaari mili!
ReplyDeleteApne blog acha likha our banaya hai
ReplyDeleteअच्छा लिखा आपने...साधुवाद.
ReplyDeleteसुन्दर व पावन लेख क्योंकि इसमें बात है उस महान आत्मा की जिसने हमें और हमारी आत्माओं को रिवाइव करने की सफ़ल मुहिम चलाई!
ReplyDeleteशुक्रिया पाश्यंती जी
वैसे रंगनाथ जी को ससम्मान कहना चाहूंगा कि धर्म का पोषण व अगली पीढ़ियों में उसे भेजना स्त्रियों की ही देन है, इतना ही नही परम्परा, संस्कार सभी कुछ उन्ही से गुजरता हुआ चलता है, इन्ही स्त्रियों की बदौलत ही शिव द्रविड़ो से आर्यों में पूजे गये, और धर्म भी इन्हे सर्व शक्तिमान, पावन और प्रेम व करूणा की देवी मानता है, तभी तो कही कहा गया है कि अत्र नारी पूज्यंते रम्न्ते तत्र देवता!
ReplyDeleteइसके बावजूद भी यदि धर्म नारी विरोधी है तो हम जैसो ने जरूरधर्म के साथ छेड़ छाड़ की होगी!
हाँ धर्म स्त्री विरोधी नही, बल्कि आदमी का लालच, एकाधिकार की भावना ने अवश्य नियमों के साथ हेरा फ़ेरी क है,शायद यह उस वक्त हुआ जब आदमी ने धन का और संपत्ति का अविष्कार कर लिया होगा और तब उसे जरूरत पड़ी होगी एक अदद उत्तराधिकारी की, जो उसकी जानकारी में उसका रक्त हो, और हाँ यही से स्त्री के बन्धन का प्रादुर्भाव हुआ विवाह जैसी संस्था के रूप में! हांलाकि इस सणंस्था ने बहुत कुरूपताओं को जन्म दिया किन्तु इस संस्था के वगैर समाज में सुन्दरता भी नही आ सकती, और न हीरि ्ते नाते और उनसे जुड़ी भावनायें! किन्तु संपत्ति उस आदमी के वास्तविक उत्तराधिकारी को प्राप्त हो इस बात ने औरत को गुलामी और बन्धनों की तरफ़ जरूर ढ़केला.....एक पुरूष की एक कुंठा और उसके इस लोभ ने....खैर माफ़ करिए बहुत हो रहा है!॒!!!
ReplyDeleteBahut prerak hai aapka blog. Badhayi.
ReplyDelete---------
चिर यौवन की अभिलाषा..
क्यों बढ रहा है यौन शोषण?
bahut achha laga yahan aakar....very nice blog
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी दिया आपने ....
ReplyDeletePashyanti ji, Pahli baar yah jankaari mili!
ReplyDeleteसिर्फ गायत्री मंत्र को ही जन जन तक नहीं पहुँचाया पश्यन्ति , बल्कि वैज्ञानिक अध्याताम्वाद को आम लोगो तक पहुँचाया .....जिसकी आवश्यकता भारत के महान वैज्ञानिक Dr. A.p.J. Abdul Kalam भी स्वीकार करते हैं ....मै उनकी बातों को हुबहू with reference लिखना चाहूँगा ........"अध्यात्म का शिक्षा के साथ समन्वय आवश्यक है .हमें स्वानुभूति को केन्द्रित करना होगा .हम सभी को अपने-अपने उच्च बौधिक धरातल के प्रति जागरूक बनना होगा .हम महान अतीत को उज्ज्वल भविष्य से जोड़ने वाली कड़ी हैं .हमें अपनी सुप्तावस्था में पड़ी आंतरिक ऊर्जा को प्रज्वलित करना होगा ताकि वह हमारा मार्गदर्शन कर सके .रचनात्मक प्रयास में रत ऐसी मेधाओं का प्रकाश इस देश में शांति ,समृधि और सुख लाएगा".......................................... 'तेजस्वी मन ...page-28 last paragraph'
ReplyDelete