Monday, March 5, 2012

मैने जाना चुप रहकर तब रोना क्या होता है.....?


जब डबडबाई आंखें और गला रूंधा रहता है
कुछ खोने का दुख, जब कुछ पाने न देता है
मैने जाना चुप रहकर तब रोना क्या होता है...?

हिचकी आती मगर कोई आवाज़ नहीं जब आती है
तुम्हे भुलाने की हर कोशिश जब तन्हा रह जाती है
कभी नहीं कुछ याद करूगा, खुद निश्चय जब लेता है
फिर खुद से छुपकर ये दिल जब तुझको देखा करता है
मैने जाना चुप रहकर तब रोना क्या होता है.....?

जब ईश्वर की सत्ता पर कई प्रश्न स्वत: लग जाते हैं
मान कसौटी तुम्हे, भागवत गीता तौली जाती है
मंदिर मस्जिद हर गुरुद्वारे में जब मत्था टिकता है
फिर भी मन की व्याकुलता का कोई हल न मिलता है
मैने जाना चुप रहकर तब रोना क्या होता है.....?
  
लाख किताबें पढ लूं फिर भी बात न कोई भाती है
शेर शायरी सबमें तेरी ही प्रतिमा बन जाती है
अंदर की आवाजें इतनी हावी यूं हो जाती हैं
चीख पुकारों, सन्नाटों में एक ही जैसा लगता है
मैने जाना चुप रहकर तब रोना क्या होता है.....?

Friday, March 2, 2012

तो दिल करता है कुछ लिखूं.............


जब दिलो-दिमाग में उधेड़बुन चलती है
जब कई सवालों की कसक सी उठती है
जब घर की तो कभी अपने शहर की याद आती है
जब बचपन की यादें रूला जाती हैं

जब मां के सीने की तड़प उठती है
तो दिल करता है कुछ लिखूं.............

जब खुशी छुपाए से नहीं छुपती है
सुनने वालों की जब कमी सी लगती है
जब तन्हाई दिल को चीर जाती है
आंखें यूं ही नम हो जाती हैं
जब और रोने को जी चाहता है
तो दिल करता है कुछ लिखूं.............

जब अपने पराए बन जाते हैं
अविश्वास आसमान से ढाए जाते हैं
जब दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है
जब आंसुओं का बादल फट पड़ता है

जब खुद को भुलाने को जी चाहता है
तो दिल करता है कुछ लिखूं.........