Wednesday, September 15, 2010

वो दिन बहुत ज़हरीले थे..........


मै बहुत छोटी थी शायद 6-7 साल की .. अम्मा ने कहा कि जाओ अंदर से माचिस ले आओ मोमबत्तियां जलानी है, थोड़ी देर में देखते देखते मेरे घर से लेकर मुहल्ले का एक एक घर रोशनी से जगमगा रहा था, कोई मटकी तो कोई थाली बजा रहा था, कोई ड्रम को बजा रहा था तो कोई अपने कपड़े उतार कर रामनाम के जयकारे लगा रहा था...पूरे मोहल्ले में हर कोई नाच गा रहा था,  खुशी में सब इतना मशगूल थे कि पुराने ख्यालातों को तिलांजलि देकर फुल वाल्यूम में स्पीकर चलाकर लड़के और लड़कियां सब एक साथ नाच रहे थे... पड़ोस वाली शुक्ला आंटी से लेकर मेरे पिताजी तक किसी के पास ये बताने के लिए वक्त नहीं था कि आखिर हम बिना दीवाली के ये दीवाली क्यों मना रहे हैं? क्यों पटाखें फोड़ रहे हैं क्यों मिठाईयां बांट रहे हैं ? मेरा बालमन व्याकुल था ये जानने के लिए कि अगर आज दीवाली है तो पिछले महीने क्या था, आज कोई त्योहार है तो हमने नए कपड़े क्यों नहीं पहने हैं? मेरा मन इस सवाल का जवाब पाने को भी बेताब था कि दीवाली पर तो तेल के दिए जलते हैं फिर आज मां ने और पड़ोस वाली मम्मी ने घर में घी के दिए क्यों जलाए हैं...कुछ समझ में नहीं आ रहा था और किसी के पास समझाने के लिए वक्त भी नहीं था..लिहाजा मैने भी उसी खुशी में खुश होना उचित समझा....
वो दिन 6 दिसंबर 1992 था, जब अयोध्या में मस्जिद गिराई गई थी,...अयोध्या मेरे शहर हरदोई से ज्यादा दूर नहीं था, मेरा परिवार आर्यसमाजी और परिवार समेत लगभग पूरा मोहल्ला घोर आरएसएस समर्थक था..,ये खुशी उसी विजय के उपलक्ष्य में मनाई गई थी. वो दिन बहुत जहरीले थे, मै थर्ड क्लास में पढ़ती थी लेकिन मेरी उम्र के मेरे साथी भी मुझे ये सलाह देने लगे थे कि सहबा (मेरी बचपन की पहली दोस्त) से दूर रहा करो क्योंकि वो मुस्लिम है...वो भी मुझसे कटी कटी सी रहने लगी थी, कुछ इस तरह मानो उसने कोई अपराध कर दिया है वो नजर नहीं मिला पाती थी मुझसे.....
आज एक बार फिर पान की दुकानों से लेकर नाई के खोखों तक 24 सितंबर की चर्चा गर्म है.....न्यूजरुम में भी इस मुद्दे की बात चलते ही कई लोगों को बिना किसी ग़लती के कन्नी काटकर जाते देखा जा सकता है..... भले ही आज कुछ विशेष तबकों को छोड़कर अयोध्या मुद्दे से सीधा नाता मध्यमवर्ग का भी न हो ,क्योंकि इऩ 18 सालों में हिंदुस्तान ने कई उतार चढ़ाव देखें है लेकिन इन मुद्दे पर विचारधारा में कुछ खास नही बदला,...अगर कुछ बदली है तो इस विचारधारा को एक्जिक्यूट करने की क्षमता.. इसीलिए मध्यम वर्ग स्थूल रुप से भले ही इससे जुड़ा न हो लेकिन सूक्ष्म शरीर अक्सर अयोध्या के चक्कर लगा आता है.....12 दिसंबर 92 का भाग्य 24 सितंबर 10 के हाथों में सुरक्षित है....फिर भी कोई ईश्वर से ये मना रहा है कि हे- भगवान जो मौका पिछली बार दीवाली के एक महीने बाद दिया था इस बार दीवाली से एक महीने पहले दे दो...तो कोई खुदा से ये मन्नत कर रहा है कि 15 दिन बाद फिर ईद लौट आए...... फैसला किसी के भी पक्ष में जाए और ये बाज़ी कोई भी जीते, डर तो बस ये सोचकर लगता है कि कहीं कोई फिर से मुझे मेरी सहबा से अलग करने की कोशिश न करे. 
(फैसले को टालने के लिए अपील की गई है 23 तारीख को इस पर फैसला होगा कि फैसला सुनाया जाए या सुरक्षित ही रखा जाए...लेकिन फैसला टालने से भी क्या होगा)

Thursday, September 9, 2010

'COMMENTS' करेंगे आप?

'COMMENTS' फेसबुक में इस 'टिप्पणी कालम' को देखकर मन में कई ख्याल आ रहे हैं, याद कीजिए एक ज़माना हुआ करता था जब बातों बातों से शुरु हुई बहस सिर्फ इसलिए गोली बारी तक पहुंच जाती थी कि 'आखिर तुमने मेरे ऊपर कमेंट कैसे किया'? 'बड़े गुस्से में लोग कहते थे बात को सीधे क्यों नहीं कहते हो कमेंट क्यों करते हो' ? और अब देखिए..........अब तो दुनिया ही कमेंट्स पर चलती है, हाल-चाल कमेंट्स से मिलता है, दिमाग़ी तरंगे भी फेसबुक में कमेंट्स के एंटीने में ही रिसीव होती हैं और दिल-ए-इज़हार भी स्टेटस के डब्बे में ही अपनी चुप्पी तोड़ता है, ताकि कमेंट्स मिल सकें.
हम सब 'COMMENT' की, अरे नहीं- नहीं 'COMMENTS' की प्रतीक्षा में रहते हैं..कुछ भी लिखते हैं तो बेसब्री से कमेंट्स का इंतज़ार करते हैं और करें भी क्यों ना आखिर यही तो है अपनी टीआरपी. ‘TRP’ बोले तो ‘PUBLICITY KA FUNDA’, फिर तो ये इंतज़ार जायज़ है ना भई...वैसे भी बड़ी मुश्किल से कमेंट ने अपनी सही पहचान पाई है, नहीं तो अब तक तो ये बेचारा अंग्रेजी का अच्छा ख़ासा शब्द अपनी पहचान ही तलाश रहा था, बड़े दुखी मन से कहता था कि ‘’आखिर मेरी ग़लती तो बताओ जो मेरे नाम के अर्थ का अनर्थ कर दिया तुम हिंग्रेजी बोलने वालों ने....मुझे शब्दों का विलेन (‘टिप्पणी’ से ‘Taunt’) बना दिया और मै बेजान कुछ कर भी न सका.... दूधों नहाए और पूते फले ये फेसबुक जो इसने मुझे मेरी पहचान वापस कर दी.. ऊपर वाला आप सब कमेंट करने वालों को भी सुखी रखे जिन्होने अपने ही स्वार्थ के लिए सही लेकिन एक नेक काम तो ज़रूर किया है ’’.......अरे अरे कहां चले, आज तो कमेंट करने से न चूको ,मेरे बारे में पहली बार किसी ने शायद इतना सोचा होगा....!!!

Friday, September 3, 2010

कोई जाए ज़रा ढूंढ के लाये न जाने कहां नींद खो गई

रात के 2 बजकर 57 मिनट हो चुकें हैं लेकिन आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं है. न ये किसी से मिलने की खुशी है और न हि किसी से बिछड़ने का गम. ये न किसी के प्यार का वो जुनून है जो सोने नहीं देता और न हि किसी की बेवफाई की कसक जिसके काटे से अब रातें नहीं कटती. सच बताऊं तो ये आंखों में गुज़रती रातें एक आदत का परिणाम हैं जानते हैं कौन..नहीं पता अरे वही जिसके बिना काटे नहीं कटते दिन ये रात, न सुबह होती है न शाम होती है, जिंदगी यूंही तमाम होती है... नहीं समझे ना, चलिए हम बता ही देते हैं, अरे वही अपना इंटरनेटजिसकी गिरफ्त में आज पूरा विश्व है, और पिछले कुछ दिनों से मै भी, अभी भी फेसबुक पर 22 लोग आनलाइन हैं यानि मेरे जैसे मेरे 21 दोस्त और हैं..आपको पता है मै और मेरा इंटरनेट एक दूसरे के पूरक बन गए हैं इन दिनों..पूरक बोले तो COMPLEMENTRY TO EACHOTHER. सुख दुख के साथी. 
बड़ी अजब दुनिया है भई इंटरनेट की, नए रिश्ते चैट करते करते यहीं पुराने हो जाते हैं और पुराने यहां नए, फेसबुक और आरकुट हर महीने नए एप्लीकेशन्स के साथ एक नए कलेवर में एक दूसरे को मुंह चिढ़ाते हैं, और उन एप्लीकेशन्स को एप्लाई करने की कोशिश में रात हमें मुंह चिढ़ाती हुई निकल जाती है. सुबह आती है उम्मीद जगती है कि कल की रात आज जैसी नहीं होगी, हम सोचते हैं कि कल से टाइम पर सोना है लेकिन ये मुआं इंटरनेट, ये सोने दे तब ना..ये तो हाथ धोके ही पीछे पड़ गया रे. मेरा दिल तो बस एक ही गाना गुनगुनाता है आजकल...... कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे प्यारे दिन...!!!!!!!
(दुनियाभर में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों का आँकड़ा 2013 तक बढ़कर 2.2 अरब हो जाने की उम्मीद है। तकनीक और बाजार अनुसंधान फर्म फॉरेस्टर रिसर्च की रपट के अनुसार 2013 तक दुनिया में इंटरनेट इस्तेमालकर्ताओं की संख्या 45 प्रतिशत बढ़कर 2.2 अरब हो जाएगी। इस बढ़ोतरी में सबसे ज्यादा योगदान एशिया का रहेगा। रिपोर्ट के मुताबिक 2013 तक भारत इंटरनेट यूजर्स के मामले में चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर होगा। 2008 में दुनिया में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 1.5 अरब थी।)

Wednesday, July 14, 2010

8 घंटे टीवी, 10 घंटे नौकरी तो बचा क्या .....?.......

जितना टीवी देखो चैनल्स की टीआरपी उतनी बढती है, सीरियल्स की उतनी कमाई होती है, नए कलाकार रातोंरात स्टार बन जाते हैं और हमारी किस्मत के सितारे आसमान से जमीन पर .........सानिया मिर्जा की शादी में पूरा दिन बर्बाद किया तो क्या मिला या धोनी की शादी की तस्वीरें देखने के लिए टीवी से चिपके रहे तो कौन सी नौकरी लग गई...नच के दिखा में लड़कियां जीती तो देश भर की लड़कियो को क्या मिल गया या फिर आइफा एवार्ड्स में हमने रात बर्बाद कर दी तो  क्या उसके एवज़ में कोई पुरस्कार मिल गया..... हम तो ये भी नहीं सोचते कि जिन रिश्तों के टूटने बिखरने पर हम साथ में आंसू बहाते हैं वो पर्दे के पीछे उन आंसुओं के हिट होने का जश्न मनाते हैं...मैच में हुई जिस हार के बाद हम खाना भी नहीं खा पाते उन हारने वालों को तो उस हार का भी पैसा मिलता है  ..........
मै अक्सर महसूस करती हूं कि जिस दिन मै टीवी नहीं देखती मुझे क्या फायदा होता है...कई पुराने दोस्तों से फोन पर बात, किताबों के पन्नों से कुछ न कुछ दिमाग में कैद, कम से कम पांच अखबारो की पढाई , कई ढेर सारी साइट्स सर्फिंग और अपने बारे में सोचने का मौका..उसके बाद भी वक्त बच जाता है....लोग अपने बच्चों से कहते हैं कि टीवी मत देखो लेकिन अगर टीवी न देखें तो करें क्या, क्या मनोरंजन का कोई साधन उसके विकल्प के तौर पर मौजूद है..क्या जिस तरह नए घर में जाते ही हम टीवी के लिए एक नया कोना तलाशते हैं वैसे ही जगह किताबों की शेल्फ के लिए ढूंढते हैं जवाब मै नहीं आप लोग देंगे....क्योंकि ये सवाल केवल हमारा ही नहीं है हमारी अगली पीढ़ी का भी है जो हमसे ये पूछती है कि टीवी नहीं तो और क्या....

Monday, July 5, 2010

चलेंगे हम गुरुवर बस तुम्हारे ही इशारों पर..

इस देश की हर नारी स्वामी दयानंद की ऋणी है क्योंकि उन्होने नारी को घर की चहारदीवारी से निकालकर पाठशाला की दहलीज़ तक पहुंचाया लेकिन हम कृतज्ञ हैं उस दैवीय सत्ता के जिसने न केवल गायत्री मंत्र को जन जन तक पहुंचाया बल्कि रुढ़ियों से बाहर निकालकर उसे नारी के भी कंठ और होंठो तक पहुंचाया. बहुत कम ही लोग ये जानते हैं कि गुरुदेव के 24 लाख पुरश्चरण अनुष्ठान को करने से पहले गायत्री मंत्र का उच्चारण नारियों के लिए करना वर्जित था यहां तक कि ऊंची आवाज़ में भी इसको उच्चरित करना पुरुषों के लिए भी मना था.. एक झलक है ये उसी महान दैवीय सत्ता की जिसका परिवार पूरे विश्व में अखिल विश्व गायत्री परिवार के नाम से जाना जाता है, जिसकी 80 देशों में शाखाएं हैं, भारत में 4000 से भी ज्यादा सेंटर्स हैं और 5 करोड़ से भी ज्यादा लोग जिसका हिस्सा हैं.....आइए दर्शन करें हमारे गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के........http://www.youtube.com/watch?v=6r4ovVGfXkY&feature=related

Thursday, June 24, 2010

.क्या कड़ा कानून रोक पायेगा ‘ऑनर किलिंग’ को


कोई भाषण नहीं देना चाहती, कोई ज्ञान बांटने की इच्छा भी नहीं है लेकिन एक सवाल है मन में जिसका जवाब ढूंढ रही हूं...दिल्ली में दिल दहला देने वाली ऑनर किलिंग हुई......भाईयों ने बहनों की हत्या कर दी बहुत कुछ कहा गया..रक्षाबंधन का खून, हॉरर किलर, खून का खून, कलयुगी भाई और न जाने क्या क्या, हत्या इतनी निर्ममता से की कि ये उपमाएं तो मिलनी ही थी...20 जून को अंकित, नकुल और मंदीप ने अपनी बहनों का खून कर दिया क्योंकि उन्होने रिवाजों के खिलाफ जाकर गैर जातीय विवाह किया, तमाम बातें हुईं कड़ा कानून बनाने की, हत्यारों को मौत की सज़ा दिलवाने की ......हत्यारे पुलिस से बचकर भागते रहे और मै समझने की कोशिश करती रही कि आखिर कैसे किसी भाई के सिर पर अपनी ही बहन का खून करने का जुनून कुछ इस तरह सवार हो गया कि वो ये भूल गया कि मौत का ये तांडव रचने के बाद उसे सारी जिंदगी सलाखों के पीछे बितानी पड़ेगी, समाज में जिस बदनामी का बदला लेने के लिए उन्होने ये खून किया उस समाज में इज्जत से जीने का एक भी मौका उन्हे कानून शायद कभी नहीं देगा...
  अंकित मनदीप और नकुल आज पुलिस की गिरफ्त में हैं जहां से शायद कभी बाहर नहीं निकल पायेंगे सरकार ने कड़ा कानून बनाने की बात भी कही, महिला आयोग ने कहा कि सज़ा इतनी कड़ी हो ताकि दुबारा किसी की हिम्मत इज्जत की खातिर खून करने की न हो लेकिन मेरे मन में एक सवाल है क्या कोई भी कड़ा कानून हमें इस दकियानूसी विचारधारा से निजात दिला पायेगा..क्योकिं घंटो टीवी पर खड़े होकर भाइयों के इस कुकृत्य को कोसने वाले भी पीठ पीछे यही कहते फिरते हैं कि जो हुआ ठीक ही हुआ, जिसकी बहन ने भाग कर शादी कर ली हो उससे पूछो लेकिन उससे मत पूछो जिन्होने मजबूर किया भागने के लिए...........कानून अगर हर चीज़ का हल होता तो शायद दहेज जैसी कुप्रथा तो कब की खत्म हो गई होती क्योंकि उससे कड़ी सज़ा तो हत्या को छोड़कर शायद ही किसी अपराध के लिए कानून मुकर्रर करता हो...
मै ये नहीं कहूंगी कि सोच बदलने की जरुरत है क्योंकि शायद ये एक उपदेश सा लगेगा लेकिन आप लोंगो के पास कोई जवाब हो तो जरुर दीजिएगा कि आखिर जरुरत है किस बात की और जिस बात की जरुरत है वो पूरी कैसे की जायेगी क्योंकि कहने से न तो सोच बदलेगी, न ही कानून से परंपरायें और न ही परंपराओं के डर से प्रेम और जहां प्रेम होगा उसे विवाह के पवित्र बंधन में बंधने से कौन रोकेगा........?

Thursday, May 13, 2010

.......न जाने तुझसे मैने क्या वो था ऐसा पाया


                      किसी सुनहरे स्वप्न मान जो तुम्हे भूल हम बैठे थे
                      जानबूझ हम  गैर   बनाकर  तुम्हे गंवां भी  बैठे  थे
                      किंतु किसी की बात ह्र्दय में आज चुभी कुछ ऐसी है
                      बीत चला जो समय वही फिर टीस  ह्रदय में  बसी है

                     हरपल हरक्षण इंतजार में एक बरस हो आया ,
             आज फिर सावन घर आया और फिर दिल ये भर आया



                   बात  भले  ही  बीत   गई   हो, बीत   गई    वो   बात   न   है
                   ये वो   मन  की    सच्चाई   है,  जो बीते   से  भी   बीते    न
                   आंख खुले  से स्वप्न  हैं  टूटे ,पर ये   तो    था    सपना   न
                   तुम भी ये थे हम भी ये थे मिल देखा जिसने सपना था

           वही स्वप्न अब सत्य    रुप में फिर   परिचित   बन   आया है
           कैसे तुमको   बतलायें हम,   मन   आतुर   क्यों    हो    आया     है

                  
बहुत रास्ते हम भी चल चुके कई मोड़ों से तुम भी गुजरे
                  हाय   भाग्य का लेखा देखो   किसी मोड़   पर हम ना   झगड़े
                  जब  जब कोई   पास था   आया  हम    खुदसे  ही दूर हो   गए
                  किंतु   नियंता  की    नियति    ये    तेरे  उतना पास   हो     गए

           एक बरस में भी तेरे बिन कोई न घर पाया
                           न जाने तुझसे मैने क्या वो था ऐसा पाया......

Monday, April 26, 2010

जब फ्लाईओवर से इंडिया गेट देखेंगे..........

विज्ञान की मानें तो दुनिया में सबसे तेज गति 'प्रकाश' की होती है लेकिन 'गीता' में 'भगवान 'की कही सुने तो मन की...जाहिर हैं हममें से ज्य़ादातर आस्तिक ही होगें तो विश्वास विज्ञान से ज्यादा भगवान पर होगा......मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही होता है....जब जब दिल्ली की सड़कों पर कई कई किलोमीटर लंबे जाम में फंसती हूं तो उस जाम का अपोसिट रिएक्शन मेरे दिमाग में होने लगता है वैसे भी There is equal and opposite reaction always in nature..न्यूटन का गति का तीसरा नियम भी यही कहता है शायद इसीलिए जाम के उस ठहराव में मेरा मन बहुत तेज गति से दौड़ने लगता है इतनी तेजी से कि शायद प्रकाश भी उससे पनाह मांगता होगा....
 सोचिए 'जाम' आपको क्या क्या देता है ........ दिल्ली की इस भागती दौड़ती जिंदगी में जब हमारे पास कमाने के चक्कर में खाने के लिए वक्त नहीं बचता तब ये जाम बिना मांगे बिना किसी प्रयास के हमें अपने लिए कुछ पल ही नहीं कई कई घंटे मुफ्त ही दे देता है वो भी हमारे कमाने के समय से निकालकर....वो घंटे वो वक्त जो सिर्फ हमारा होता है, जिस पर सिर्फ हमारा अधिकार होता है इसे हमसे कोई शेयर नहीं करना चाहता क्योकिं निजामुद्दीन पर जाम लगा है ये पता चलते ही अपने भी यू टर्न मारकर आईटीओ से निकल जाते हैं.......हर बार जाम मुझे एक नई सोच देकर जाता है इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ...
जिस दिन दिल्ली में एमसीडी की नई इमारत यानि दिल्ली की सबसे ऊंची (110 मीटर) बिल्डिंग का उद्घाटन हुआ हुआ मै कभी न खत्म होने से दिखने वाले एक जाम में फंस गई.... और उसी जाम के दौरान अपने जाम के साथी से मुझे पता चला कि अभी अभी गृहमंत्री ने उस इमारत का उद्घाटन कर दिया है जहां से आप पूरी दिल्ली देख सकेंगे, (अरे साथी से सोच में न पड़ जाइगा कि कौन, अरे वही अपना एफएम)  ……इतना सुनना था कि मेरा मन फिर से विज्ञान को चुनौती देते हुए बीस साल आगे पहुंच गया...सोचिए बीस साल आगे की दिल्ली कैसी होगी...... कैसा होंगी दिल्ली की सड़के .........
        अभी हम ऐसी इमारत बना रहे हैं जहां से सड़कों पर गाडियां माचिस की डिब्बी की तरह दिखती है और फ्लाईओवर्स किसी नाली की तरह, बीस साल बाद क्या होगा.... हम ऐसे फ्लाईओवर्स बनाएंगे जहां से इमारतें माचिस की डिब्बी की तरह दिखेंगी और फ्लाईओवर्स देखने के लिए इमारत की दसवीं मंजिल से भी गर्दन ऊंची करनी होगी.... अभी तो सड़को के जाम से निपटने के लिए फ्लाईओवर्स बन रहे हैं लेकिन फ्लाईओवर्स के जाम से निपटने के लिए क्या होगा.....अभी हम सड़कों पर फ्लाईओवर्स बनाते हैं फिर फ्लाईओवर्स पर फ्लाईओवर्स बनाएंगे यानि कई कई मंजिला फ्लाईओवर्स.........साइनेजेस पर लेफ्ट, राइट ,यूटर्न और स्ट्रेट के निशान नहीं होगे बल्कि ये नंबर लिखे रहेंगे की किस फ्लाईओवर की कौन सी मंजिल आपको कहां ले जाती है...राजीव चौक मेट्रो स्टेशन की तरह फ्लाईओवर्स के स्टेशन्स होंगे..1st फ्लोर से कनाट प्लेस जायेंगे, 2nd  से चांदनी चौक और 5th  वाली मंजिल आपको दिल्ली के दूसरे शहर यानि रोहिणी ले जाएगी.......हम रास्ता कुछ यूं बतायेंगे कि यहां से सीधा जाना पहले फ्लाईओवर की दूसरी मंजिल से उतर कर दूसरे की चौथी मंजिल से नीचे की तरफ देखने पर जो गोल चक्कर और उसके बीच में एकमात्र बिल्डिंग दिखाई देगी वही है इंडिया गेट.......ये कल्पना नहीं है ऐसा ही होना होगा क्योकि पहले गाड़ियां सड़कों पर चलने के लिए बनती थी अब गाड़ियों के लिए सड़कों पर फ्लाईओवर्स बनते हैं....
दिल्ली वाले बिहार से आने वाली रेलगाडियों की भीड़ देखकर अक्सर ये कहते हैं कि बिहार के आदमी का तो एक पैर ही ट्रेन में रहता है.....फिर दिल्ली की सड़कों को देखकर क्या कहा जाए...मै नहीं कहूंगी आप सोचिए.....

Thursday, April 15, 2010

काश! जिंदगी में भी ‘ctrl+z’ होता.......

आजकल न जाने क्यों अक्सर ये ख्याल आता है कि काश! किताब के पन्नों की तरह बीती जिंदगी के कुछ पल भी मै पलट पाती, आक्सफोर्ड की कोई डिक्शनरी जिंदगी के उन पन्नों, उन रिश्तों को समझने के लिए भी मेरे साथ होती जिसकी अनुपल्बधता में कुछ पैराग्राफ बिना समझे ही मै आगे बढ़ गई और जिंदगी एक किताब बन गई....काश! ईश्वर ये मौका देता कि बीते वक्त के पन्नो को संभाल कर उन पर फिर से मनचाही जिल्द मै बंधवा पाती और जिंदगी कभी प्यार से बुलाकर कहती कि जी लो खुद से भी प्यारे उन रिश्तों को जो बीच मंझधार में अधूरे रह गए...... इसी काश! काश! की इस कश्मकश में एक सवाल मेरे जेहन में हमेशा दौड़ता है कि क्यों........... हर साल बदलते कोर्स को समझकर तो हम एक्जाम में अच्छे नंबरों से पास हो जाते हैं लेकिन बचपन से सुनते आ रहे गीता के श्लोकों को नही समझ पाते और जिंदगी के इम्तिहान में फेल हो जाते हैं.....?

मै अक्सर सोचती थी कि दुनिया का सबसे निस्वार्थ प्रेम क्या होता है लेकिन आज मुझे इसका जवाब मिल गया, हर रिश्ते में कहीं न कहीं कुछ पाने कुछ खोने का स्वार्थ होता है, किसी रिश्ते में लोग क्या कहेंगे ये ज्यादा मायने रखता है तो किसी रिश्ते का खुमार अपने मां बाप को ही बेगाना बना देता है लेकिन छड़ी के सहारे चलने वाले वो झुर्रीदार चेहरे जिनकी इच्छाएं उम्र के उस पड़ाव पर लगभग खत्म ही हो गई होती हैं...हम पर निस्वार्थ प्यार लुटाते हैं लेकिन हम समझ नहीं पाते,.....और जब समझ आता है तो बहुत देर हो चुकी होती है, इतनी देर कि जिंदगी फिर सुबह के भूले को शाम को घर आने का मौका नहीं देती.........और फिर हमारे पास आसमान के तारों में उन्हे खोजते-खोजते ‘काश’ ‘काश’ दुहराने के सिवा कोई चारा नहीं बचता..... मेरी दादी को भी कुछ ऐसे ही सिर उठाकर रात के अंधेरे में तारों में खोजती हूं मै लेकिन वो कभी नहीं मिलतीं.....बस उनकी हर याद उनकी हर बात मुझे झकजोर कर रख देती है ऐसा लगता है कि कौन करेगा मुझसे कभी इतना प्यार....... दिल में अक्सर ये टीस उठती है कि काश! दादी फिर से मेरे पास आ जाती, फिर से इस बार जब मै घर से आती तो अपने धीमे धीमे कदमो को तेज करती हुई वो दरवाजे पर दौड़तीँ और अपनी आंखो की नमी में ये सवाल लिए कि बिटिया फिर कब आओगी वो मेरे हाथ को चूमकर मुझे मीठी दे जाती....

काश! काश! काश!…सिर्फ काश, जिसका कोई जवाब नहीं बिल्कुल वैसे जैसे सपनों का कोई अंत नहीं और इसी अंतहीन सफर को आगे बढाती हुई इन खुली आंखो में एक और सपना लिए मै सोने जा रही हूं कि .....काश! जिंदगी में भी ‘ctrl+z’ और ‘shift+delete’ का कोई बटन होता..........!!!

Sunday, April 4, 2010

सेल सेल सेल... सानिया-शोएब की शादी, जल्दी 'देखिए' मौका हाथ से न छूट जाए


पिछले दिनो हर जगह हर कहीं हर न्यूज चैनल पर सिर्फ और सिर्फ एक ही नाम था..अमिताभ, अमिताभ और बस अमिताभ..अमिताभ ने ब्लाग पर क्या लिखा, अभिषेक ने ट्विटर पर क्या लिखा..और बाप-बेटे पर सामना ने क्या लिखा बस यही खबरें थी..लेकिन अचानक 'बिग बी' इस 'बिग बाज़ार' से गायब हो गए....बिल्कुल वैसे जैसे बाजार की 'सेल सेल सेल'......का वक्त खत्म हो गया और नए उत्पाद ने पुराने को रिप्लेस कर दिया. आजकल का नया उत्पाद है 'सानिया-शोएब की शादी'...लेकिन इस बाजार और परंपरागत बाजार में थोड़ा सा फर्क है और वो ये कि परंपरागत बाजार में नया उत्पाद दुकान में जगह लेता है और यहां तो नया उत्पाद पूरी दुकान ही खरीद लेता है...यहां तो आपको अमिताभ इन दिनो पिछली शेल्फ से भी झांकते न मिलेंगे, इस बिग बाजार में आपके प्यारे बिग बी गल्ती से भी प्राइम टाइम तो क्या दोपहर की सास-बहू में भी मिल जाएं तो बताइगा क्योकि वहां भी सानिया ने उन पर बाजी मार रखी है. वहां भी आपको यही बताया जा रहा होगा कि सानिया की ड्रेस डिसाइनर ने इस बार क्या तैयारियां की है, सोहराब के दिल में क्या चल रहा है जब शोएब-सानिया नाच रहे हैं....
सानिया की शादी की बात क्या हुई ऐसा लगा जैसे मैनीक्वीन पर लगे 'सफारी सूट' (अमिताभ) को अचानक 'चूड़ीदार' ने रिप्लेस कर दिया..अचानक सानिया का कद बिग बी से ऊंचा हो गया और हम अमिताभ को भूल गए.. पहले हम किसे याद कर रहे थे ये तो मुझे भी दिमाग पर जोर देकर भी याद नही आ रहा...... हो सकता है सब कुछ ठीक हो गया हो, शायद कांग्रेस और अमिताभ की दोस्ती हो गई हो, अशोक चव्हाण को अब बिग बी के साथ मंच शेयर करने में कोई परहेज नहीं रहा हो और शायद जूनियर बच्चन से भी शीला आंटी ने माफी मांग ली हो..जिस मिशन को लेकर पिछले दिनो ये पत्रकारिता चल रही थी वो पूरा हो गया हो इसीलए अब एक नया मिशन है शोएब की कथित पहली पत्नी आयशा को इंसाफ दिलवाना, तभी तो हमारे साथी पत्रकार भूख और प्यास को तिलांजलि देकर दो दिन से लगातार हैदराबाद में आयशा के नहीं बल्कि सानिया के घर के आगे कुछ इस तत्परता से रिपोर्टिंग कर रहे हैं जिसके आगे 26-11 के हमले का सीधा प्रसारण भी फीका पड़ जाए...
लेकिन वारी किस्मत चेन्नई सुपरकिंग्स की, 246 रन मिलाकर भी कुछ न मिला, और हाय रे बेचारे मुरली विजय एक 'स्पेशल बुलेटिन' तक न बना, अरे स्पोर्ट्स बुलेटिन में जगह तो हारने पर भी मिल जाती है,...काश 56 गेंदों में 127 रन की ये पारी 4 दिन पहले खेली होती तो एक क्या कई बुलेटिन आपके नाम हो जाते और संडे को हमेशा की तरह होने वाले खबरों के अकाल में शाम तक आप ही छाए रहते, लेकिन आपकी टाइमिंग मैदान पर तो ठीक थी लेकिन स्क्रीन पर कुछ गड़बड़ हो गई, आपने भी वक्त चुना तो ऐसा जब आपकी एक छोटी सी तस्वीर को भी अधिकतर अखबारों मे भी पहले पन्ने पर जगह न मिली और आपका 127 रन का ये पहाड़ भी सानिया-शोएब की शादी से आए इस तूफान में भरभरा के पड़ा....चलिए कोई नहीं फिर से कोशिश कीजिएगा...आजकल तो हर दुकान पर सेल सिर्फ और सिर्फ सानिया की लगी हुई है, ......


अरे अरे आप लोग अभी तक मेरी ये पोस्ट क्यों पढ रहे है जाइए झट से अपना रिमोट उठाइए और इस 'बिग बाजार' में घूम आइए..कहीं मौका हाथ से न छूट जाए.

Thursday, April 1, 2010

हम ‘ब्लाग’ क्यों लिखते हैं?

आज किसी ने सवाल किया, ’आपको नहीं लगता कि ब्लाग में भी अब लोग प्रभावित होकर लिखते हैं वो उतना निष्पक्ष नहीं रह गया’...अचानक एक के बाद एक कई जवाबों की दिमाग़ में जैसे होड़ सी मच गई, कौन सा पहले देती इस उधेड़बुन में सही जवाब न दे पाई.
शायद मास काम में एडमिशन ही लिया था तभी अरुन आनंद सर की क्लास में जाना था ‘ब्लाग’ के बारे में. करीब साढ़े तीन साल पुरानी बात होगी. सर ने बताया था ‘ब्लाग’ यानि अपनी एक निजी डायरी. फर्क इतना कि पहले ये पन्नों पर लिखी जाती थी अब कम्प्यूटर पर, जिसे कोई भी पढ़ सकता है और प्रतिक्रया भी दे सकता है...हांलाकि मैथ्स और कंम्प्यूटर की स्टूडेंट रही हूं मै, लेकिन उस समय कुछ खास समझ नहीं आया था, लेकिन अब आता है...और अब इतना आता है कि पेट में पच ही नहीं पाता..और इस ‘अनकही’ पर उलट जाता है

‘ब्लाग’ यानि ‘निजी डायरी’....कम्पेयर करने बैठूं तो बहुत कुछ मिलता तो बहुत कुछ बदला भी नज़र आता है... हां बहुत कुछ बदला जैसे; पहले ‘कलम के सिपाही’ थे हम, और अब ‘की-बोर्ड’ के हो गए..पहले डायरी कपड़ों की सौ परतों में छुपाकर अलमारी के किसी कोने में रखी जाती थी और उस डायरी के पन्नो का रंग बिना खुले ही सफेद से पीला हो जाता था और वो गुलाब का फूल लाल से भूरा और फिर काला, लेकिन अब इस ब्लाग नुमा डायरी की तो हर पोस्ट खुलेआम प्रतिक्रयाओं की बाट जोहती है...पहले दो जिस्म प्यार करते करते कब एक जान बन जाते थे इसका पता या तो उनकी शादी से लगता था या फिर कभी नहीं लगता था, , लेकिन अब तो जंग इस बात की होती है कि ‘मेरी वाली अच्छी या तेरी वाली’, बिल्कुल वैसे जैसे मेरी ‘अनकही’ अच्छी या तेरी कही ‘बेहतर’.

कोई माने या न माने लेकिन अपने दिल का सच तो यही है कि ये ब्लाग अब ‘डायरी’ की उपमा से निकलकर कोई ‘डायरेक्टरी’ बन चुका है, जहां संबंधो को हरा रखने के लिए 10 डिजिट का नंबर दबाने की भी ज़रुरत नहीं और न हि नए रिश्ते तलाशने के लिए किसी क्लासिफाइड ऐड पर पैसे खर्च करने की..इस महंगाई के ज़माने में भी....... यहां सब कुछ मुफ्त में उपलब्ध है बिल्कुल मुफ्त, मुफ्त की वाहवाही, मुफ्त की आलोचना, मुफ्त के सुझाव और मुफ्त के रिश्ते भी......पढ़ने का अधिकार भले ही कपिल सिब्बल आजादी के 63 साल बाद देने जा रहें है लेकिन लिखने का अधिकार तो ब्लाग महाराज ने दसियों साल पहले ही दे दिया....

सोच क्या रहे हैं प्रतिक्रया नहीं देंगे...आज आप देंगे तो कल हम देंगे..

Tuesday, March 30, 2010

....और मै सोचती रह गई

आज आफ था, बहुत सारे विषय दिमाग में आ रहे थे जिन पर अपनी भड़ास निकालने का मन हो रहा था..लेकिन ये हो न सका...
दरअसल हुआ यूं कि कुछ लिखती उससे पहले ही पढ़ना शुरु कर दिया.रवीश सर के ब्लाग पर बिहार का हाल जाना, आशुतोष जी के ब्लाग से अमिताभ और कांग्रेस की लड़ाई की असल वजह समझी, हांलाकि सुबह भास्कर में उनका लेख पहले ही पढ़ लिया था...फिर गल्ती से टीवी खोल लिया और सानिया और शोएब की शादी में दिलचस्पी आने लगी......अभी फिर से लिखने की सोच रही थी कि ट्विटर अपडेट्स पर राजदीप सर का 'take a chill pill' देखा, पढा तो जाना कि उन्होने लिखा था कि कैसे अब खेल और शादी के बहाने देश की सीमाएं पार होंगी..उन्होने तो एक लाइन लिखी लेकिन मै फिर सोचने लगी कि कैसे सानिया की शादी टूटी और शोएब की सगाई..मन को समझाया और एकाग्र होने की नसीहत दी...फिर लिखने बैठी..अभी कम्पोज पर क्लिक ही किया था कि एऩडीटीवी के अखिलेश सर का कमेंट पढते पढते उनका ब्लाग 'मेरी कही' देखा, नाम बड़ा इंन्ट्रेस्टिंग लगा 'मेरी कही' आखिर 'अनकही' से मिलता जो था...विजि़ट किया तो वहां मजहदी और बिरजू पर लेख पढ़कर सोच में चली गई...और अभी सोच से उबरी हूं ..

अब रात का 1 बज गया है, दिन बीत गया और अब आधी रात भी बीत चुकी है, जाहिर है अगला दिन भी लग गया होगा.... सारी भड़ास निकलने से पहले पेट में ही पच गई ....और मै सोचती रह गई.

Sunday, March 28, 2010

'अर्थ आवर'

हमेशा की तरह आज भी दिन की शुरुआत अखबारो के समंदर में गोता लगाने से ही हुई.....और हमेशा की ही तरह सभी अखबारों में कई खबरें कामन थीं..जैसे मोदी का एसआईटी पेशी मामला, आईपीएल में युसुफ पठान का कमाल, बाबरी मस्जिद विंध्वंस पर तत्कालीन आईपीएस अंजू गुप्ता के बयान ने कैसे बढ़ाई आडवाणी की मुश्किलें, और भी बहुत कुछ जो शायद अभी मुझे याद न आ रहा हो....लेकिन हां एक खबर बार बार मेरे दिमाग में क्लिक कर रही है कि आज शाम 8.30 से 9.30 तक कैसा होगा माहौल जब दुनिया के लगभग 90 देश मनाएंगे 'अर्थ आवर'...यानि ऊर्जा संरक्षण का संदेश देने की लगातार चौथे साल भी कोशिश की जायेगी. भारत में दिल्ली मुंबई जयपुर और बैंगलुरू के प्रमुख स्थान इस मुहिम में शामिल होंगे. दिल्ली का रिजर्व बैंक और उसी से थोड़ा सा ही दूर स्थित होटल ली मेरिडयन भी शाम के इस एक घंटे में अंधेरे में डूब जाएगा...और संदेश देगा कि कैसे बचाएं हम बिजली को. पता नहीं मेरी सोच कितनी सही है और कितनी गलत लेकिन ..मुझे नहीं लगता कि 365 दिनों में सिर्फ एक दिन में, एक बार मनाए जाने वाले इस एक घंटे में हम कुछ ऐसा कर पाएंगे जो लोगों को एकदम से जागऱुक कर देगा और लोग बिजली बचाने लगेगे. मुझे तो यही लगता है कि ये 'अर्थ आवर' वास्तव में सिर्फ एक संदेश है जिसे आज भर के लिए अखबारो की सुर्खियों में जगह मिल गई और शाम होते होते शायद मोदी से निपट चुके न्यूज चैनल्स की ब्रेकिंग न्यूज में ये तड़का लगा दे या हम जैसे रिपोर्टर्स के लाइव और वाकथ्रू का हिस्सा बन जाए. यहां मै गल्ती से एक शब्द प्रयोग कर गई 'मनाएंगे'..या सच कहें तो सच्चाई यही है कि इस एक घंटे के दौरान हमारा ध्यान इसके संदेश पर कम और इसे 'मनाने' पर ज्यादा होगा कि आखिर ये 'अर्थ आवर' कितना सफल हुआ, हम ये नहीं सोचेंगे कि हमने कितनी बिजली बचाई बल्कि शायद उस दौरान हमारा ध्यान इस ओर ज्यादा होगा कि 9.30 कब होगा.कई सवाल हैं मेरे जेहन में...
2007 में जबसे ये शुरु हुआ कितनी बिजली बचाई हमने, वास्तव में ये सिर्फ एक त्योहार जैसा है या एक जागरुकता अभियान या मुहिम, क्योंकि मुहिम एक या दो दिन की तो नहीं हो सकती..?
अभी कुछ दिन पहले (MONDAY) ही वाटर डे निकल गया........लेकिन हममें से कितनों को पता लगा, या कितनो ने पानी बचाने के लिए कुछ सोचा?
लेकिन मैने सोचा...मैने सोचा कि कम से कम अपने स्तर पर जितना पानी बचा सकती हू मुझे बचाना चाहिए..और उम्मीद करती हूं खुद से कि आज का ये अर्थ आवर मुझे संदेश से अधिक भी कुछ दे जाए? वैसे नोएडा में रहने के चलते मुझे ज्यादा चिंता करने की ज़ऱुरत ही नही क्योंकि यहां तो बिजली और पानी का संऱक्षण खुद ब खुद हो जाता है.

Saturday, March 27, 2010

पारदर्शिता का क्या है पैमाना...

20-20 इंडियन क्रिकेट विश्व कप के लिए आज टीम का चुनाव हो गया, लेकिन सवाल फिर वहीं पर आकर खड़ा हो गया कि क्या ये चुनाव पारदर्शी है? क्या हम कह सकते हैं कि जिन खिलाड़ियों का चुनाव किया गया वो उनसे बेहतर थे जो लगातार आईपीएल में अच्छा परफार्मेंस दिखाते आ रहे हैं. नाम पहले से तय थे या फिर जिनमें से चुनाव होना था वो तय था ये तो चयनकर्ता ही बता सकते हैं लेकिन इस चुनाव ने बहुतों को निराश किया है. आश्चर्य की बात तो ये रही कि सौरभ तिवारी और मनीष पांडेय के प्रदर्शन को भी चयनकर्ताओं ने चयन का आधार नहीं माना. घरेलू क्रिकेट के प्रदर्शन को ही केवल आधार मानना मुझे नहीं लगता कि एक सही फैसला है . आईपीएल के प्रदर्शन को भी चयन में जगह दी जानी चाहिए क्योंकि आईपीएल के क्रिकेट में हर देश के खिलाड़ी शामिल होते है और 20-20 का ये चयन किसी ट्रायंगुलर सीरीज़ के लिए नहीं हुआ बल्कि ये चयन उस रोमांच में शामिल होने के लिए हुआ है जिसे 20-20 विश्व कप कहते हैं.....जहां आईपीएल की ही तरह हर देश के खिलाड़ी शामिल होते हैं.