मै बहुत छोटी थी शायद 6-7 साल की .. अम्मा ने कहा कि जाओ अंदर से माचिस ले आओ मोमबत्तियां जलानी है, थोड़ी देर में देखते देखते मेरे घर से लेकर मुहल्ले का एक एक घर रोशनी से जगमगा रहा था, कोई मटकी तो कोई थाली बजा रहा था, कोई ड्रम को बजा रहा था तो कोई अपने कपड़े उतार कर रामनाम के जयकारे लगा रहा था...पूरे मोहल्ले में हर कोई नाच गा रहा था, खुशी में सब इतना मशगूल थे कि पुराने ख्यालातों को तिलांजलि देकर फुल वाल्यूम में स्पीकर चलाकर लड़के और लड़कियां सब एक साथ नाच रहे थे... पड़ोस वाली शुक्ला आंटी से लेकर मेरे पिताजी तक किसी के पास ये बताने के लिए वक्त नहीं था कि आखिर हम बिना दीवाली के ये दीवाली क्यों मना रहे हैं? क्यों पटाखें फोड़ रहे हैं क्यों मिठाईयां बांट रहे हैं ? मेरा बालमन व्याकुल था ये जानने के लिए कि अगर आज दीवाली है तो पिछले महीने क्या था, आज कोई त्योहार है तो हमने नए कपड़े क्यों नहीं पहने हैं? मेरा मन इस सवाल का जवाब पाने को भी बेताब था कि दीवाली पर तो तेल के दिए जलते हैं फिर आज मां ने और पड़ोस वाली मम्मी ने घर में घी के दिए क्यों जलाए हैं...कुछ समझ में नहीं आ रहा था और किसी के पास समझाने के लिए वक्त भी नहीं था..लिहाजा मैने भी उसी खुशी में खुश होना उचित समझा....
वो दिन 6 दिसंबर 1992 था, जब अयोध्या में मस्जिद गिराई गई थी,...अयोध्या मेरे शहर हरदोई से ज्यादा दूर नहीं था, मेरा परिवार आर्यसमाजी और परिवार समेत लगभग पूरा मोहल्ला घोर आरएसएस समर्थक था..,ये खुशी उसी विजय के उपलक्ष्य में मनाई गई थी. वो दिन बहुत जहरीले थे, मै थर्ड क्लास में पढ़ती थी लेकिन मेरी उम्र के मेरे साथी भी मुझे ये सलाह देने लगे थे कि सहबा (मेरी बचपन की पहली दोस्त) से दूर रहा करो क्योंकि वो मुस्लिम है...वो भी मुझसे कटी कटी सी रहने लगी थी, कुछ इस तरह मानो उसने कोई अपराध कर दिया है वो नजर नहीं मिला पाती थी मुझसे.....
आज एक बार फिर पान की दुकानों से लेकर नाई के खोखों तक 24 सितंबर की चर्चा गर्म है.....न्यूजरुम में भी इस मुद्दे की बात चलते ही कई लोगों को बिना किसी ग़लती के कन्नी काटकर जाते देखा जा सकता है..... भले ही आज कुछ विशेष तबकों को छोड़कर अयोध्या मुद्दे से सीधा नाता मध्यमवर्ग का भी न हो ,क्योंकि इऩ 18 सालों में हिंदुस्तान ने कई उतार चढ़ाव देखें है लेकिन इन मुद्दे पर विचारधारा में कुछ खास नही बदला,...अगर कुछ बदली है तो इस विचारधारा को एक्जिक्यूट करने की क्षमता.. इसीलिए मध्यम वर्ग स्थूल रुप से भले ही इससे जुड़ा न हो लेकिन सूक्ष्म शरीर अक्सर अयोध्या के चक्कर लगा आता है.....12 दिसंबर 92 का भाग्य 24 सितंबर 10 के हाथों में सुरक्षित है....फिर भी कोई ईश्वर से ये मना रहा है कि हे- भगवान जो मौका पिछली बार दीवाली के एक महीने बाद दिया था इस बार दीवाली से एक महीने पहले दे दो...तो कोई खुदा से ये मन्नत कर रहा है कि 15 दिन बाद फिर ईद लौट आए...... फैसला किसी के भी पक्ष में जाए और ये बाज़ी कोई भी जीते, डर तो बस ये सोचकर लगता है कि कहीं कोई फिर से मुझे मेरी सहबा से अलग करने की कोशिश न करे.