Monday, April 26, 2010

जब फ्लाईओवर से इंडिया गेट देखेंगे..........

विज्ञान की मानें तो दुनिया में सबसे तेज गति 'प्रकाश' की होती है लेकिन 'गीता' में 'भगवान 'की कही सुने तो मन की...जाहिर हैं हममें से ज्य़ादातर आस्तिक ही होगें तो विश्वास विज्ञान से ज्यादा भगवान पर होगा......मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही होता है....जब जब दिल्ली की सड़कों पर कई कई किलोमीटर लंबे जाम में फंसती हूं तो उस जाम का अपोसिट रिएक्शन मेरे दिमाग में होने लगता है वैसे भी There is equal and opposite reaction always in nature..न्यूटन का गति का तीसरा नियम भी यही कहता है शायद इसीलिए जाम के उस ठहराव में मेरा मन बहुत तेज गति से दौड़ने लगता है इतनी तेजी से कि शायद प्रकाश भी उससे पनाह मांगता होगा....
 सोचिए 'जाम' आपको क्या क्या देता है ........ दिल्ली की इस भागती दौड़ती जिंदगी में जब हमारे पास कमाने के चक्कर में खाने के लिए वक्त नहीं बचता तब ये जाम बिना मांगे बिना किसी प्रयास के हमें अपने लिए कुछ पल ही नहीं कई कई घंटे मुफ्त ही दे देता है वो भी हमारे कमाने के समय से निकालकर....वो घंटे वो वक्त जो सिर्फ हमारा होता है, जिस पर सिर्फ हमारा अधिकार होता है इसे हमसे कोई शेयर नहीं करना चाहता क्योकिं निजामुद्दीन पर जाम लगा है ये पता चलते ही अपने भी यू टर्न मारकर आईटीओ से निकल जाते हैं.......हर बार जाम मुझे एक नई सोच देकर जाता है इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ...
जिस दिन दिल्ली में एमसीडी की नई इमारत यानि दिल्ली की सबसे ऊंची (110 मीटर) बिल्डिंग का उद्घाटन हुआ हुआ मै कभी न खत्म होने से दिखने वाले एक जाम में फंस गई.... और उसी जाम के दौरान अपने जाम के साथी से मुझे पता चला कि अभी अभी गृहमंत्री ने उस इमारत का उद्घाटन कर दिया है जहां से आप पूरी दिल्ली देख सकेंगे, (अरे साथी से सोच में न पड़ जाइगा कि कौन, अरे वही अपना एफएम)  ……इतना सुनना था कि मेरा मन फिर से विज्ञान को चुनौती देते हुए बीस साल आगे पहुंच गया...सोचिए बीस साल आगे की दिल्ली कैसी होगी...... कैसा होंगी दिल्ली की सड़के .........
        अभी हम ऐसी इमारत बना रहे हैं जहां से सड़कों पर गाडियां माचिस की डिब्बी की तरह दिखती है और फ्लाईओवर्स किसी नाली की तरह, बीस साल बाद क्या होगा.... हम ऐसे फ्लाईओवर्स बनाएंगे जहां से इमारतें माचिस की डिब्बी की तरह दिखेंगी और फ्लाईओवर्स देखने के लिए इमारत की दसवीं मंजिल से भी गर्दन ऊंची करनी होगी.... अभी तो सड़को के जाम से निपटने के लिए फ्लाईओवर्स बन रहे हैं लेकिन फ्लाईओवर्स के जाम से निपटने के लिए क्या होगा.....अभी हम सड़कों पर फ्लाईओवर्स बनाते हैं फिर फ्लाईओवर्स पर फ्लाईओवर्स बनाएंगे यानि कई कई मंजिला फ्लाईओवर्स.........साइनेजेस पर लेफ्ट, राइट ,यूटर्न और स्ट्रेट के निशान नहीं होगे बल्कि ये नंबर लिखे रहेंगे की किस फ्लाईओवर की कौन सी मंजिल आपको कहां ले जाती है...राजीव चौक मेट्रो स्टेशन की तरह फ्लाईओवर्स के स्टेशन्स होंगे..1st फ्लोर से कनाट प्लेस जायेंगे, 2nd  से चांदनी चौक और 5th  वाली मंजिल आपको दिल्ली के दूसरे शहर यानि रोहिणी ले जाएगी.......हम रास्ता कुछ यूं बतायेंगे कि यहां से सीधा जाना पहले फ्लाईओवर की दूसरी मंजिल से उतर कर दूसरे की चौथी मंजिल से नीचे की तरफ देखने पर जो गोल चक्कर और उसके बीच में एकमात्र बिल्डिंग दिखाई देगी वही है इंडिया गेट.......ये कल्पना नहीं है ऐसा ही होना होगा क्योकि पहले गाड़ियां सड़कों पर चलने के लिए बनती थी अब गाड़ियों के लिए सड़कों पर फ्लाईओवर्स बनते हैं....
दिल्ली वाले बिहार से आने वाली रेलगाडियों की भीड़ देखकर अक्सर ये कहते हैं कि बिहार के आदमी का तो एक पैर ही ट्रेन में रहता है.....फिर दिल्ली की सड़कों को देखकर क्या कहा जाए...मै नहीं कहूंगी आप सोचिए.....

Thursday, April 15, 2010

काश! जिंदगी में भी ‘ctrl+z’ होता.......

आजकल न जाने क्यों अक्सर ये ख्याल आता है कि काश! किताब के पन्नों की तरह बीती जिंदगी के कुछ पल भी मै पलट पाती, आक्सफोर्ड की कोई डिक्शनरी जिंदगी के उन पन्नों, उन रिश्तों को समझने के लिए भी मेरे साथ होती जिसकी अनुपल्बधता में कुछ पैराग्राफ बिना समझे ही मै आगे बढ़ गई और जिंदगी एक किताब बन गई....काश! ईश्वर ये मौका देता कि बीते वक्त के पन्नो को संभाल कर उन पर फिर से मनचाही जिल्द मै बंधवा पाती और जिंदगी कभी प्यार से बुलाकर कहती कि जी लो खुद से भी प्यारे उन रिश्तों को जो बीच मंझधार में अधूरे रह गए...... इसी काश! काश! की इस कश्मकश में एक सवाल मेरे जेहन में हमेशा दौड़ता है कि क्यों........... हर साल बदलते कोर्स को समझकर तो हम एक्जाम में अच्छे नंबरों से पास हो जाते हैं लेकिन बचपन से सुनते आ रहे गीता के श्लोकों को नही समझ पाते और जिंदगी के इम्तिहान में फेल हो जाते हैं.....?

मै अक्सर सोचती थी कि दुनिया का सबसे निस्वार्थ प्रेम क्या होता है लेकिन आज मुझे इसका जवाब मिल गया, हर रिश्ते में कहीं न कहीं कुछ पाने कुछ खोने का स्वार्थ होता है, किसी रिश्ते में लोग क्या कहेंगे ये ज्यादा मायने रखता है तो किसी रिश्ते का खुमार अपने मां बाप को ही बेगाना बना देता है लेकिन छड़ी के सहारे चलने वाले वो झुर्रीदार चेहरे जिनकी इच्छाएं उम्र के उस पड़ाव पर लगभग खत्म ही हो गई होती हैं...हम पर निस्वार्थ प्यार लुटाते हैं लेकिन हम समझ नहीं पाते,.....और जब समझ आता है तो बहुत देर हो चुकी होती है, इतनी देर कि जिंदगी फिर सुबह के भूले को शाम को घर आने का मौका नहीं देती.........और फिर हमारे पास आसमान के तारों में उन्हे खोजते-खोजते ‘काश’ ‘काश’ दुहराने के सिवा कोई चारा नहीं बचता..... मेरी दादी को भी कुछ ऐसे ही सिर उठाकर रात के अंधेरे में तारों में खोजती हूं मै लेकिन वो कभी नहीं मिलतीं.....बस उनकी हर याद उनकी हर बात मुझे झकजोर कर रख देती है ऐसा लगता है कि कौन करेगा मुझसे कभी इतना प्यार....... दिल में अक्सर ये टीस उठती है कि काश! दादी फिर से मेरे पास आ जाती, फिर से इस बार जब मै घर से आती तो अपने धीमे धीमे कदमो को तेज करती हुई वो दरवाजे पर दौड़तीँ और अपनी आंखो की नमी में ये सवाल लिए कि बिटिया फिर कब आओगी वो मेरे हाथ को चूमकर मुझे मीठी दे जाती....

काश! काश! काश!…सिर्फ काश, जिसका कोई जवाब नहीं बिल्कुल वैसे जैसे सपनों का कोई अंत नहीं और इसी अंतहीन सफर को आगे बढाती हुई इन खुली आंखो में एक और सपना लिए मै सोने जा रही हूं कि .....काश! जिंदगी में भी ‘ctrl+z’ और ‘shift+delete’ का कोई बटन होता..........!!!

Sunday, April 4, 2010

सेल सेल सेल... सानिया-शोएब की शादी, जल्दी 'देखिए' मौका हाथ से न छूट जाए


पिछले दिनो हर जगह हर कहीं हर न्यूज चैनल पर सिर्फ और सिर्फ एक ही नाम था..अमिताभ, अमिताभ और बस अमिताभ..अमिताभ ने ब्लाग पर क्या लिखा, अभिषेक ने ट्विटर पर क्या लिखा..और बाप-बेटे पर सामना ने क्या लिखा बस यही खबरें थी..लेकिन अचानक 'बिग बी' इस 'बिग बाज़ार' से गायब हो गए....बिल्कुल वैसे जैसे बाजार की 'सेल सेल सेल'......का वक्त खत्म हो गया और नए उत्पाद ने पुराने को रिप्लेस कर दिया. आजकल का नया उत्पाद है 'सानिया-शोएब की शादी'...लेकिन इस बाजार और परंपरागत बाजार में थोड़ा सा फर्क है और वो ये कि परंपरागत बाजार में नया उत्पाद दुकान में जगह लेता है और यहां तो नया उत्पाद पूरी दुकान ही खरीद लेता है...यहां तो आपको अमिताभ इन दिनो पिछली शेल्फ से भी झांकते न मिलेंगे, इस बिग बाजार में आपके प्यारे बिग बी गल्ती से भी प्राइम टाइम तो क्या दोपहर की सास-बहू में भी मिल जाएं तो बताइगा क्योकि वहां भी सानिया ने उन पर बाजी मार रखी है. वहां भी आपको यही बताया जा रहा होगा कि सानिया की ड्रेस डिसाइनर ने इस बार क्या तैयारियां की है, सोहराब के दिल में क्या चल रहा है जब शोएब-सानिया नाच रहे हैं....
सानिया की शादी की बात क्या हुई ऐसा लगा जैसे मैनीक्वीन पर लगे 'सफारी सूट' (अमिताभ) को अचानक 'चूड़ीदार' ने रिप्लेस कर दिया..अचानक सानिया का कद बिग बी से ऊंचा हो गया और हम अमिताभ को भूल गए.. पहले हम किसे याद कर रहे थे ये तो मुझे भी दिमाग पर जोर देकर भी याद नही आ रहा...... हो सकता है सब कुछ ठीक हो गया हो, शायद कांग्रेस और अमिताभ की दोस्ती हो गई हो, अशोक चव्हाण को अब बिग बी के साथ मंच शेयर करने में कोई परहेज नहीं रहा हो और शायद जूनियर बच्चन से भी शीला आंटी ने माफी मांग ली हो..जिस मिशन को लेकर पिछले दिनो ये पत्रकारिता चल रही थी वो पूरा हो गया हो इसीलए अब एक नया मिशन है शोएब की कथित पहली पत्नी आयशा को इंसाफ दिलवाना, तभी तो हमारे साथी पत्रकार भूख और प्यास को तिलांजलि देकर दो दिन से लगातार हैदराबाद में आयशा के नहीं बल्कि सानिया के घर के आगे कुछ इस तत्परता से रिपोर्टिंग कर रहे हैं जिसके आगे 26-11 के हमले का सीधा प्रसारण भी फीका पड़ जाए...
लेकिन वारी किस्मत चेन्नई सुपरकिंग्स की, 246 रन मिलाकर भी कुछ न मिला, और हाय रे बेचारे मुरली विजय एक 'स्पेशल बुलेटिन' तक न बना, अरे स्पोर्ट्स बुलेटिन में जगह तो हारने पर भी मिल जाती है,...काश 56 गेंदों में 127 रन की ये पारी 4 दिन पहले खेली होती तो एक क्या कई बुलेटिन आपके नाम हो जाते और संडे को हमेशा की तरह होने वाले खबरों के अकाल में शाम तक आप ही छाए रहते, लेकिन आपकी टाइमिंग मैदान पर तो ठीक थी लेकिन स्क्रीन पर कुछ गड़बड़ हो गई, आपने भी वक्त चुना तो ऐसा जब आपकी एक छोटी सी तस्वीर को भी अधिकतर अखबारों मे भी पहले पन्ने पर जगह न मिली और आपका 127 रन का ये पहाड़ भी सानिया-शोएब की शादी से आए इस तूफान में भरभरा के पड़ा....चलिए कोई नहीं फिर से कोशिश कीजिएगा...आजकल तो हर दुकान पर सेल सिर्फ और सिर्फ सानिया की लगी हुई है, ......


अरे अरे आप लोग अभी तक मेरी ये पोस्ट क्यों पढ रहे है जाइए झट से अपना रिमोट उठाइए और इस 'बिग बाजार' में घूम आइए..कहीं मौका हाथ से न छूट जाए.

Thursday, April 1, 2010

हम ‘ब्लाग’ क्यों लिखते हैं?

आज किसी ने सवाल किया, ’आपको नहीं लगता कि ब्लाग में भी अब लोग प्रभावित होकर लिखते हैं वो उतना निष्पक्ष नहीं रह गया’...अचानक एक के बाद एक कई जवाबों की दिमाग़ में जैसे होड़ सी मच गई, कौन सा पहले देती इस उधेड़बुन में सही जवाब न दे पाई.
शायद मास काम में एडमिशन ही लिया था तभी अरुन आनंद सर की क्लास में जाना था ‘ब्लाग’ के बारे में. करीब साढ़े तीन साल पुरानी बात होगी. सर ने बताया था ‘ब्लाग’ यानि अपनी एक निजी डायरी. फर्क इतना कि पहले ये पन्नों पर लिखी जाती थी अब कम्प्यूटर पर, जिसे कोई भी पढ़ सकता है और प्रतिक्रया भी दे सकता है...हांलाकि मैथ्स और कंम्प्यूटर की स्टूडेंट रही हूं मै, लेकिन उस समय कुछ खास समझ नहीं आया था, लेकिन अब आता है...और अब इतना आता है कि पेट में पच ही नहीं पाता..और इस ‘अनकही’ पर उलट जाता है

‘ब्लाग’ यानि ‘निजी डायरी’....कम्पेयर करने बैठूं तो बहुत कुछ मिलता तो बहुत कुछ बदला भी नज़र आता है... हां बहुत कुछ बदला जैसे; पहले ‘कलम के सिपाही’ थे हम, और अब ‘की-बोर्ड’ के हो गए..पहले डायरी कपड़ों की सौ परतों में छुपाकर अलमारी के किसी कोने में रखी जाती थी और उस डायरी के पन्नो का रंग बिना खुले ही सफेद से पीला हो जाता था और वो गुलाब का फूल लाल से भूरा और फिर काला, लेकिन अब इस ब्लाग नुमा डायरी की तो हर पोस्ट खुलेआम प्रतिक्रयाओं की बाट जोहती है...पहले दो जिस्म प्यार करते करते कब एक जान बन जाते थे इसका पता या तो उनकी शादी से लगता था या फिर कभी नहीं लगता था, , लेकिन अब तो जंग इस बात की होती है कि ‘मेरी वाली अच्छी या तेरी वाली’, बिल्कुल वैसे जैसे मेरी ‘अनकही’ अच्छी या तेरी कही ‘बेहतर’.

कोई माने या न माने लेकिन अपने दिल का सच तो यही है कि ये ब्लाग अब ‘डायरी’ की उपमा से निकलकर कोई ‘डायरेक्टरी’ बन चुका है, जहां संबंधो को हरा रखने के लिए 10 डिजिट का नंबर दबाने की भी ज़रुरत नहीं और न हि नए रिश्ते तलाशने के लिए किसी क्लासिफाइड ऐड पर पैसे खर्च करने की..इस महंगाई के ज़माने में भी....... यहां सब कुछ मुफ्त में उपलब्ध है बिल्कुल मुफ्त, मुफ्त की वाहवाही, मुफ्त की आलोचना, मुफ्त के सुझाव और मुफ्त के रिश्ते भी......पढ़ने का अधिकार भले ही कपिल सिब्बल आजादी के 63 साल बाद देने जा रहें है लेकिन लिखने का अधिकार तो ब्लाग महाराज ने दसियों साल पहले ही दे दिया....

सोच क्या रहे हैं प्रतिक्रया नहीं देंगे...आज आप देंगे तो कल हम देंगे..